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प्रबन्ध-पुष्पाञ्जलि

में उसने बहुत तङ्ग किया ओर छूटने की कोशिश में पैरों के रस्सों को खींच खींच कर व्यर्थ परिश्रम किया। पकड़ते समय भी उस ने बड़ी वीरता दिखाई थी। नागेन्द्रगज को अपने नुकीले और बलवान दाँतों से उस ने घायल कर दिया था। चाहे जो कुछ हो, जो वीर हैं वे प्रबल शत्रु के सामने भी वीरता दिखाये बिना नहीं रहते। भेड़ बकरी की तरह, बिना हाथ पैर हिलाये, स्वतन्त्रता जैसी प्यारी चीज को वे हाथ से नहीं जाने देते।

जङ्गली हाथी आठ नौ महीने में सध जाते हैं। गर्दन और पैर रस्सों से खूब बंँधे रहते हैं। इस से वहाँ का चमड़ा कट जाता है और घाव हो जाते हैं उन में तेल और चरबी लगाई जाती है। पहले पहल इसी बहाने हाथी के बदन में हाथ लगाया जाता है। इस से हाथी को आराम मिलता है और धीरे धीरे वह उन लोगों को पहचानने लगता है जो उसे चारा पानी देते हैं। उस का जङ्गलीपन छूट जाता है। जब हाथी अच्छी तरह हिल जाता है तब वह सवारी या बोझ होने का काम देता है। कोई कोई खेदा के काम में भी लाये जाते हैं। जिस पराधीनता की पाश में पड़ते समय उन्होंने इतना तिरस्कार प्रकट किया था, उसी में वे अपने सजातियों को फंँसाते हैं। अफसोस! हाथियों के