पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२११

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नमस्कार जिस मन्दिर क दरवारी सदा उन्मुक्त रहा है जिस मन्दिर में रंक नरेश समान रहा है जिसके है आराम प्रकृती मनन ही सारै