सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रतिमा हि देख करके क्यो भाल में है रेखा निर्मित किया किसी ने इसको, यही है लेखा हर एक पत्थरो मे वह मूर्ति ही छिपी है शिल्पी ने स्वच्छ करके दिसला दिया, वही है इस भाव को हमारे उसको तो देख लीजे धरता है वेश वोही जैसा कि उसको दीजे यो ही अनेक रूपी बार कभी पुजाया लीला उसी की जग मे सवम वही समाया मस्जिद, पगोडा, गिरजा, रिसको बनाया तूने भक्त भावना के छोटे-बडे नमूने सुन्दर वितान कैसा आकाश भी तना है उसका अनन्त-मदिर, यह विश्व ही बना है सव प्रसाद वाङ्गमय ॥१५०॥