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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२२१

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वर्षा होने लगी कुसुम मकरन्द की, प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द मे कैसी छवि ने बाल अरण सी प्रकट हो, शूय हृदय को नवल राग रन्जित किया सद्य स्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीथ मे मन पवित्र उत्साहपूण भी हो गया, विश्व विमल आनन्द भवन सा बन रहा मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात या प्रसाद वाङ्गमय ।।१५८॥