पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२४१

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लोग प्रिय दशन बताते इन्दु को देखकर सौन्दय के इक बिन्दु को किन्तु प्रिय-दशन स्वय सौन्दय है सब जगह इसकी प्रभा ही वय है जो पथिक होता कभी इस चाह मे वह तुरत ही लुट गया इस राह मे मानवी या प्राकृतिक सुपमा सभी दिव्य शिल्पी के कला कौशल सभी देख लो जी भर इसे देखा करो इस क्लम से चित्त पर रेखा करो लिखते लिखते चित्र यह बन जायगा सत्य सुन्दर तव प्रक्ट हो जायगा प्रसाद वाङ्गमय ॥१८०॥