पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३५२

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बिन्दु सुमन, तुम कली बने रह जाओ, ये भौरे केवल रस-लोभी इन्हे न पास बुलाओ। हवा लगी बस, झटपट अपना हृदय सोल दिखलाते । जाते किस आशा पर कहो न क्या फल पाते। मधुर गन्धमय स्वच्छ कुसुम रस क्यो बरबस हो खोते । कितनो ही को देखा तुम सा, हँसते है फिर रोते ॥ सूखी पखडियो को देखो, इन्हे भूल मत जामो । मिला विकसने का प्रसाद यह, सोचो मन मे लाओ। - झरना ॥ २९७॥