पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Fores आया देखो विमल बसन्त । समय सुहाया कैसा आया सुन्दर-तर श्रीमन्त । मन रसाल की मुकुल माल जीवन धन, कैसी आज- कोमल बनी, अहा । देखो तो अच्छा बना समाज । मलयानिल पर बैठे आओ धीरे धीरे नाथ । हंसते आओ सुमन सभी खिल जायें जिसके साथ । मत झुकना, हम स्वय खडे है माला लेकर राज कोकिल प्राण पचमी स्वर-लहरी मे गाता आज ।। झरना ॥२९९॥