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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४५२

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श्रद्धा देवा यजमाना वायु गापा उपासते श्रद्धा हृदय्य याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु (१०-१५१४) कामायनी कामगोत्रजा श्रद्धा नामपिका-सायण इलामकृण्व मनुपस्य शासनीम ( १-३१ ११ ) सरस्वती साधयन्ती धिय न इला दवी भारती विश्तूर्ति तिस्त्रा देवी स्वघया वहिरेदमच्छिद्र पातु शरण निपद्य ! ( २-३ ८) आ ना यज्ञ भारती तूयमेत्विला मनुष्वदिह घेतयन्तो तिस्त्रो दवी वहिरेद स्योन सरस्वती स्वपस सदतु ( १० ११०८ ) यदा वै श्रद्धधात्यथमनुते, नाथद्दध मनुते श्रद्धधदेवमनुते ( छान्दाग्य ) -अ०७ खण्ड १८। ततो मनु श्राद्धदेव सनायामास भारत श्रद्धाया जनयामास दशपुत्रानस आत्मवान् ११ भागवत ९स्क घ-१ तत्रश्रद्धामनो पत्नी होत्तार समयाचत-१४ -अध्याय श्रद्धा देवो वै मनु - (शतपथ १ अध्याय ४ ब्राह्मण)-१५ 'मनवहवं प्रात इत्यादि जलप्रलय की क्या शतपथ के ८अध्याय-१प्राह्मण में है । प्रजापति पर रुद्र का क्रोध-(शतपथ ६ प्रपाठक २ व्राह्मण) किलताकुलीऽइति हासुर ब्रह्मावासतु -(१४, शतपय १ अध्याय ४ ब्राह्मण) कही कही इला के साथ महीदेवी का नाम भी आया है- इला सरस्वती महो तिस्त्रोत्वीमयाभुव । वहिं सीद त्वस्त्रिध" (५-५-८) इससे स्पष्ट ह कि इला पृथ्वी के अय में नहीं प्रयुक्त है किन्तु मेघावाहिनी देवी है । असौ वे रोकोऽग्निर्गौतम तस्यादित्य एव समिद्रश्मया धूमोऽहचिदिशोग्ङ्गारा अवा तर दिशो विस्फुलिङ्गास्तस्मि नेतस्मिन्नग्नौ दवा श्रद्धा जुह्वति तस्या आहुत्य सोमोराजा सभवति (९–पष्ठे द्वितीय ब्राह्मण) बृहदारण्यक तथा मनुषस्य मनोरिडामेतन्नामधेया पुत्री शासनी धर्मोपदेशिक/मकृण्वन् कृतवत --सायण-१-३१-११० नोऽम्मटीयोंधिय बुद्धि याग वा साधयन्ती निवतयन्ती सरस्वतीइडत नामिका देवी भारती च विश्वतूतिविश्वानितूर्णानियस्या सा तात्शी सवविषयगतावाद । एतदुभयविशेषण २-३-८-सायण 0 ऋग्वेद । सन्दभ-सक्त मुद्रणपाठ ॥ ४०३॥