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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५१२

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जलधि के फूटें कितने उत्स द्वीप, कच्छप डूबे-उतराय, किंतु वह खडी रहे दृढ मूर्ति अभ्युदय का कर रही उपाय । विश्व की दुबलता वल बने, पराजय का बढता व्यापार हँसाता रहे उसे सविलाम शक्ति का कोडामय सचार । शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त विकल विखरे हैं, हो निरुपाय, समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय।" श्रद्धा ॥४६९॥