पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५२२

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जो कुछ हो मैं समझता इस मधूरता भार को जीवन के, आने दो कितनी आती है बाधाये दम मर्म दम के।

नश्क्षत्रों तुम क्या देखोगे इस ऊषा की लाली करता है संकल्प भर रहा है उसमें संदेह की जाली क्या है? कौशल यह कोमल कितना है सुषमा दुर्लभ बनेगी करता