पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५५७

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"क्या कहती हो ठहरो नारी । सकरप अथु जल से अपने, तुम दान कर चुकी पहल हो जीवन के सोने से सपने । नारी | तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पग तल म, पीयूष स्रोत सी वहा करो जीवन के सुदर समतल मे । देवो की विजय, दानवो की हारो का होता युद्ध रहा, सघप सदा उर अतर म जीवित रह नित्य विरुद्ध रहा। आँसू से भीगे अचल पर मन का सर कुछ रखना होगा, तुमको अपनी स्मित रेखा से यह सन्धि पत्र लिखना होगा।" प्रसाद वाङ्गमय ।।५१६॥