पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७०

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तीन ारम्भिक कवितायें प्रारम्भत "कलाधर' उपनाम से पूज्य पिताजी ( श्री जयशकर प्रसादजी ) कवितायें लिखा करते थे ऐसो प्राय छोटी बड़ी चार सो कृतिया थी जिहें कुछ घरेलू कारणवश सन १९०६ में उहाने कारखाने की जलती भट्ठी को अर्पित कर लिया। किन्तु उही के पैतृक अधिष्ठान 'सुधनी साह' की गद्दी के पुराने कागदो में कारखाने का उस समय का मुद्रित विनापन पत्र उपलब्ध हुआ जिसे 'प्रसाद की का यमयी हस्तलिपि' इतने दिनों से संजोये रखने का सौभाग्य प्राप्त है । इस पावन ऋक्य को प्रतिच्छवि और लिपिपाठ अगले पष्ठोंपर दिया जा रहा है। जहाँ "कलाधर" छाप वाली व्रज भाषा की कविताए प्राप्त है। चिनाशार ३