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सिकुडन कौशेय वसन की थी विश्व सुन्दरी तन पर, या मादन मृदुतम कपन सृजन पर। छायी सम्पूर्ण सुख सहचर दुख विदूपक परिहास पूर्ण कर अभिनय, सब की विस्मृति के पट मे छिप बैठा था अव निभय । थे डाल डाल मे मघुमय मृदु मुकुल बने झालर से, रस भार प्रफुल्ल सुमन सब धीरे धीरे से बरसे। हिम खड रश्मि मडित हो मणि दीप प्रकाश दिखाता, जिनसे समीर टकरा कर अति मधुर मृदग बजाता। मगीत मनोहर उठता मुरली बजती जीवन की, समेत कामना बन कर वतलाती दिशा मिलन की