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हाँ वाया। वुढ्ढे ने पुकारा -नया युवक समीप आ गया। बुड्ढे न एक बार नीचे से ऊपर तक उम देखा। युवक के ऊपर सन्देह का काई कारण न मिला। उसा कहा-सब घोडा को मलवाकर चारे-पानी का प्रबन्ध कर दो। बुड्ढे क तीन साथी और उस युवर न मिलवर घाडा का मलना आरम्भ किया । बुढ्ढा एक छोटी-मी मंचिया पर बेठकर तमाखू पोन लगा । गाला उसक पास खडी हाकर उसस हंस-हंसकर बाते करन लगी। पिता और पुत्री दाना प्रसन थे । वुड्ढे न पूछा--गाला । यह युवक कैसा है ? गाला न जान क्या इस प्रश्न पर पहली वार लज्जित हुई । फिर संभल कर उसन वहा-दखन म तो यह बडा सीधा और परिश्रमी है। मैं भी एमा ही समझता हूँ। प्राय जब हम लोग बाहर चल जात है तब तुम अकली रहती हो । बाबा । अब वाहर न जाया करा । ता क्या यही बैठा रहूँ गाला । मैं इतना बूढा नही हो गया ! नही बावा । मुझे नकली छाडकर न जाया करो। पहल तू जब छोटो थी, तब ता नही डरता था। जब क्या हुआ? और, अब तो यह 'नय भी यहां रहा करगा । वटी । यह वुलीन युवक जान पडता है। हो बाबा । किन्तु यह घोडा का मलना नहीं जानता-दखा सामन । पशुजा म इस तनिक भी स्नह नही है। बाबा । तुम्हारे सायी भी बडे निर्दयी है । एक दिन मन दखा कि मुख स चरत हुए एक बरी के बच्चे को इन लोगो न समूचा हो भून डाला । य सब बड डरावन लगते है । तुम भी उन्ही में मिल जात हा । सुप पगली । अब बहुत विलम्ब नही-मैं इन सबस अलग हो जाऊँगा । अच्छा तो बता, इस 'नय को रख लू न ? -बदन गम्भीर दृष्टि स गाला की आर दख रहा था। गाला न कहा-अच्छा ता है बावा बिचारा दुख का मारा है। एक चाँदनी रात थी । बरसात में धुला हुना जगल अपनी गभीरता म डूब रहा था । नाल के तट पर बैठा हुआ 'नय' निनिमप दृष्टि स उस हृदय-विमाहन चित्र-पट का दख रहा था। उसके मन म कितनी बीती हुई स्मृतियाँ स्वर्गीय नृत्य करता हुई चली जा रही थी । वह अपन फटे हुए काट का टटोलन लगा। सहसा उस एक बासुरी मिल गई- जैस कोई खोई हुई निधि मिली । वह प्रसन हाकर १३८ प्रसाद वाङ्मय