पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२१९

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थे। सहसा द्वार पर हलचल हुई, कोई भीतर घुसना चाहता था। रक्षिया ने शान्ति को घोषणा की । जूरी लोग आये । दो ने कहा-हम लोग यमुना को हत्या का अपराधी समझते है, पर दण्ड इस कम दिया जाय !-जज न मुस्कुरा दिया । अन्य तीन सज्जनो ने कहा-प्रमाग अभियोग के लिए पर्याप्त नही है । अभी वे प्रा कहत नही पाये थे कि एक लम्बा-चौडा, दाढ़ी-मूंछ वाता युवक, कम्बल बगल में दबाये, कितनो ही को धक्का देता, जज को कुरसा की वगलवाली खिडकी से कब घुस आया यह किसी ने नही देखा। वह सरकारी वकील के पास आकर बाला-मैं है हत्यारा | मुगको फांसी दा? यह स्त्री निरपराध है ! जज ने चपरासिया की ओर दया। पेशकार ने कहा-पागला को भी तुम नहीं रोकते । ऊंघते रहते हा क्या? इसी गडबडी में वाकी तीन जूरी सज्जनो ने अपना वक्तव्य पूरा किया-हम लाग यमुना को निरपराध समझत हैं । उधर वह पागल भोड म से निकला जा रहा था। उसका कुत्ता भौंककर हल्ला मचा रहा था । इसी वीच म जज ने कहा -हम इन तीन जूरियो स सहमत होते हुए यमुना का छोड दते है । एक हलचल मच गई। मगल और निरजन जो अब तक दुश्चिन्ता और सन्देह से कमरे क बाहर थे-यमुना क समीप आय । वह रान लगी। उसन मगल से कहा-मैं नही चल सकती। मगल मन-ही-मन कट गया। निरजन उस सान्त्वना देकर आम तक ल आया । एक वकील साहब पहन लगे- क्या जी, मैंने तो समझा था पि पागलपन भा एक दिल्लगी है, पर यह तो प्राणा स भा खिलवाड है। दूसर न कहा-यह भो तो पागलपन है, जा पागल से भी बुद्धिमानी की आशा तुम रखत हा दाना वकील मित्र हंसने लगे। पाठका का कुतूहल हागा कि वाथम न अदालत में उपस्थित होकर क्या नही इस हत्या पर प्रकाश डाला | परन्तु वह नहीं चाहता था कि उस हत्या के अवसर पर उसका रहना तया उक्त घटना से उसका सम्पर्क सब लोग जान त । उसका हृदय घण्टो के भाग जान स और भो लज्जित हो गया था। अब वह काल १६१