पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७७

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लाग इनक शिष्टाचार स अपरिचित है। बावजा । आप हो न मम साहब के लिए ओ । इनका नाम क्या है यह पूछना ता मैं भूल हो गई। ____मरा नाम शैला' है मा जी 1 --शैला की बोली घण्टी की तरह गूंज उठी। श्यामदुलारा के मन में ममता उमड आई। उन्होंने कहा-चौवेजी । देखिए, इनका कोई कष्ट न होने पावे । इन्द्रदेव तो लडका है, वह कभी काहे को इनकी सुविधा की खाज-खबर लेता हागा। ___जी सरकार | मम साहब बडी चतुर है। वह तो कुंवर साहब का प्रबन्ध स्वय आदेश देकर कराती रहती हैं । हम लोग ता अभी सीख रहे हैं । बडे सरकार के समय म जा व्यवस्था थी, उसी से तो अव काम नहीं चल सकता । इन्द्रदेव घबरा गये थे । उन्हे कभी चौबे कभी अनवरी पर क्रोध आता, पर वह वहाली देते रहे। माधुरी न कहा- अच्छा ता भाई साहब | अभी शहर चलने की इच्छा नही है क्या ? अब तो यहाँ कडी दिहाती सर्दी पडेगी। ____ नहीं, अभी तो यही रहूँगा । क्या मा, यहा काई कष्ट तो नहीं है ?–इन्द्र देव ने पूछा। ___अनवरी ने कहा--इस छाटा काठी म साफ हवा कम आती है। और ता काई हाँ, बीवीरानी, मैं यह ता कहना भूल ही गई थी कि मुझे आज शहर चला जाना चाहिए । कई रोगियो को आज ही तक के लिए दवा देआई हूँ। मोटर ता मिल जायगी न ? ठहरिए, आप तो न जान क्या घबराई है। अभी ता माँ का दवा माधुरी की बात पूरी न हान पाई कि अनवरी ने कहा-दवा खायेंगी तो नहीं, यही लगाने की दवा है । लगाते रहिए, मुझे रोक कर क्या कीजिएगा। हां, यहां साफ हवा मिलनी चाहिए, इसके लिए आप सोचिए । ____ चौवेजी वीच म बाल उठे-तो बडी सरकार उस काठी में रह, मुल हुए कमरे और दालान उसम तो हैं ही। बालने के लिए तो वाल गये, पर चोवेजी कई बाते सावकर दांत से अपनी जीभ दवान लगे। उनकी इच्छा तो हुई कि अपने कान भी पकड ल, पर साहस न हुआ। इन्ददव चुप रह । शेला न कहा-मा जी । वडी काठी म चलिए। यहाँ न रहिए। -यह वचारी भूल गई कि श्यामदुलारी उसक साथ कैस रहगो ! श्यामदुलारा न इन्द्रदव का चहरा दखा। वह उत्तरा हुआ ता नही था, किन्तु उस पर उत्साह भी न था। माधुरो न भेला को स्वय कहत हुए जव सुना, तितलो २४