पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९६

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करान का पूरा प्रबन्ध कर लिया है । मम साहर, गरीव को कोई सुनता है ? आप ही कहिए न । किसी ब्याह म रमुआ ने दस रुपये लिये । वह हल चलाता मर गया । जिसका व्याह हुआ उस दस रुपय स, वह भी उन्ही रुपयो में हन चलान लगा। उसके भी लडक यदि हल चलाने के डर स घबराकर कलकत्ता भाग जायें, तो इसम बावाजी का क्या दोष है ? कुछ नही-~-शैला ने कहा। फिर आप ता जानती नही । यह तहसीलदार पहले मरे यहा काम करता था । गुदाम वाले माहब स एक बात पर उभाड कर, मरे पिताजी को लडा दिया । मुकदम म जव मेरा सब साफ हो गया, तो जाकर यह धामपुर की छावनी म नौकरी करने लगा। इसका दानव की तरह लडने का चसका है, सो भी अदालत का ही। नहीं तो किसी एक दिन इसकी लडने की साध मिटा देता । मै किसी दिन इसकी नस ताड दूं, तो मुझे चैन मिले। इसके कलेजे म कतरनी-से कीड दिन-रात कलवलाया करते है। यह तहसीलदार तुम्हारे यहाँ अरे यह वात मै काध म कह गया मम साहब, जो समय बीत गया, उस साच कर क्या करूँगा । अव ता में एक साधारण किसान हूँ । शेरकाट का चलत-चलत शैला ने कहा-क्या कहा, शरकाट न । हाँ-तहसीलदार न । कहा था कि शेरकाट ही बैंक बनान के लिए अच्छा स्थान है । कहा है वह ? मधुवन गुर्रा उठा भूखे भेडिये को तरह । उस ठडी रात म उसे अपना क्रोध दमन करने स पसीना हो आया । बोला नहीं। शैला भी सामने एक ऊंचा-सा टीला दखकर अन्यमनस्क हो गयी जा चादनी रात म रहस्य के स्तूप-सा उदास बैठा था। रामजस सहसा पीछे स चिल्ला उठा-अब तो पहुँच गय मधुबन भइया । मधुबन ने गम्भीरता से कहा-हूँ। शैला धुपचाप टूटी हुई सीढिया से चढने लगी । उस नीरस रजनी म पुरानी काठी, बहुत दिनो क बाद तीन नये आगन्तुका का देखरर, जैस व्यग की हँसी हँसन लगी। अभी ये लाग दालान में पहुँचने भी न पाये थे कि एक सियार उसम से निकल कर भागा । हा, भयभीत मनुष्य पहले ही आक्रमण करता है । रामजस न डरकर उस पर डडा चलाया। किन्तु बह निकल गया। शैला न कहा-मैं भीतर चलूंगी। चलिए, पर अंधेर म कोई जानवर मधुबन चुप रहा । आगे उसके मन में शेरकोट म बैंक बनाने की बात आ २६८ प्रसाद वाङ्मय