पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१५

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है कि वह स्वय किसी को प्यार करे, किसी के दुख-सुख मे हाय वटाकर अपना जन्म सार्थक कर ले । सुखदेव नाटक म जैसे अभिनय कर रहा था। राजकुमारी ने एक दीर्घ निश्वास लिया। वह निश्वास उस प्राचीन खंडहर म निराश होकर घूम आया था । वह सिर झुकाकर बैठी रही । सुखदेव की आँखो मे आंसू झलकने लगे थे। वह दरवारी था आया था कुछ काम साधने, परन्तु प्रसग ऐसा चल पड़ा कि उसे कुछ साफ-साफ होकर सामने आना पडा। उसकी चतुरता का भाव परास्त हो गया था । अपने को सम्हालकर कहने लगा-तो फिर मैं अपनी बात न कहूँ? अच्छा, जैसी तुम्हारी आज्ञा । एक विशेष काम से तुम्हारे पास आया हूँ। उसे तो सुन लोगी? तुम जो कहोगे, सब सुनूंगी, सुखदेव । तितली को तो जानती हो न 1 जानती हूँ क्या नहीं, अभी आज ही ता उसम भेंट हुई थी। और हमारे मालिक कुंवर इद्रदेव को भी? क्या नही। यह भी जानती हा कि तुम लागा के शेरकोट को छानन का प्रवन्ध तहसीलदार ने कर लिया है। राजकुमारी अब अपना धैर्य न सम्हाल सकी, उसने चिढकर कहा-सब सुनती हूँ, जानती हूँ, तुम साफ-साफ अपनी वात कहा । मैंने तहसीलदार को रोक दिया है। वहां रहकर अपनी जांखा के सामने तुम्हारा अनिष्ट होते मैं नहीं देख सकता था। किन्तु एक काम तुम कर सकोगी? अपने को बहुत रोकते हुए राजकुमारी ने कहा-क्या ? किसी तरह तितली स इन्द्रदेव का ब्याह करा दा और यह तुम्हारे किये होगा । और तुम लोगो से जो जमीदार के घर से बुराई है, वह भलाई म परिणत हा जायगी । सब तरह का रीति-व्यवहार हो जायगा । भाभी ! हम सब मुख स जीवन बिता सकगे। राजकुमारी निश्चेप्ट होकर मुखदेव का मह देखन लगी, और वह बहुत-सी वात सोच रही थी। बोडी देर पर वह वोलो-क्यो, मेम साहब क्या करेंगी? ___ उसी को हटान के लिए तो । तितलो को छोडकर और कोई ऐसी बालिका जाति की नहीं दिखाई पडती, जो इन्द्रदव से भ्याही जाय, क्याकि विलायत स मम ल आने का प्रवाद मब जगह फैल गया है । तितलो २८७