पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२९

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मैं जो मेम साहब का काम करता हूं। मलिया भी कहती थी कि वीवी रानी मेम साहब को निकालकर छोडे गी और तुमको भी हूँ-हूं-ऊँ-ॐ। उसका स्वर तो ऊंचा हुआ, पर बीवी-रानी अपना नाम सुनकर क्षोभ और क्रोध से लाल हो गई। —सुना न, इस पाजी का हौसला देखिये । यह कितनी झूठी-झूठी बाते भी बना सकता है। -कहकर भी माधुरी रोने-रोने हो रही थी। आगे उसके लिए बोलना असम्भव था । बात मे सत्याश था। वह क्रोध न करके अपनी सफाई देने की चेष्टा करने लगी। उसने कहा-बुलाओ तो मलिया का कोई मुनता है कि नहीं। इन्द्रदेव ने विष्य का भीषण आभास पाया । उन्हाने कहा-काई काम नहीं। इस शैतान को पुलिस मे देना ही होगा । मैं अभी भेजता हूँ। रामदीन की नानी दौडी आई। उसके रोन-गाने पर भी इन्द्र देव को अपना मत बदलना ठीक न लगा। हाँ, उन्होने रामदीन को चुनार के रिफार्मेटरी मे भेजने के लिए मजिस्ट्रेट को चिट्ठी लिख दी। शैला के हटते ही उसका प्रभु-भक्त बाल-सेवक इस तरह निकाला गया । इन्द्रदेव ने देखा कि समस्या जटिल होती जा रही है । उसके मन में एक वार यह विचार आया कि वह यहाँ से जाकर कही पर अपनी बैरिस्टरी की प्रैक्टिस करने लगे। परन्तु शैला । अभी तो उसक काम का आरम्भ हो रहा है । वह क्या समझेगी। मरो कायरता पर उसे कितनी लज्जा होगी। और मैं ही क्यों ऐसा करूं । रामदीन के लिए अपना घर तो बिगाडूंगा नही । पर यह चाल कब तक चलेगी। एक छोटे-से घर मे साम्राज्य की-सी नीति बरतने में उन्हे बडी पीडा होने लगी। अधिक न सोचकर वह वाहर घूमन चले गये। ___ शेला को रामदीन की बात तब मालूम हुई, जब वह मजिस्ट्रेट के इजलास पर पहुंच चुका था और पुलिस ने किसी तरह अपराध प्रमाणित कर दिया था । साथ ही, इन्द्रदेव-जैसे प्रतिष्ठित जमीदार का पत्र भी रिफार्मेटरी भेजने के लिए पहुंच गया था। तितली ३०१