पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

मिला--मैं आँख मीचकर कहना ही चाहता था-'कौन " फिर न जाने क्यो चुप रहा । कुछ फुसफुसाहट हुई । दो स्त्रियां वातें करने लगी थी। उन बातो मे मेरी भी चर्चा रही । मुझे नीद आ रही थी। सुनता भी जाता था। वह कोई सन्देश को वात थी। मैं पूरा सुनकर भी सो गया । और नोद खुलने पर जितना ही मैं उन वाता का स्मरण करना चाहता, वे भूलने लगी। मन मे न जाने क्यो घबराहट हुई, किन्तु उसे फिर से स्मरण करने का कोई उपाय नही । अनावश्यक बाते आज-कल मेरे सिर में चक्कर काटती रही हैं । परन्तु जिनकी आवश्यकता होती है, वे तो चेष्टा करने पर भी पास नहीं आती। मुझे कुछ विस्मरण का रोग हो गया है क्या? तो मैं लिख लिया करूं । ___मैं सब कुछ समीप होने पर चिन्तित क्यो रहता हूँ। चिन्ता अनायास घेर लेती है । जान पडता है कि मेरा कौटुम्बिक जीवन बहुत ही दयनीय है। ऊपर से तो कही भी कोई कमी नही दिखाई देती। फिर भी, मुझे धीरे-धीरे विश्वास हो चला है कि भारतीय सम्मिलित कुटुम्ब की योजना की कडियां चूर-चूर हो रही हैं । वह आर्थिक संगठन अव नही रहा, जिसमे कुल का एक प्रमुख सबके मस्तिष्क का सचालन करता हुआ रुचि को समता का भार ठीक रखता था। मैंने जो अध्ययन किया है, उसके वल पर इतना तो कही सकता हूँ कि हिन्दू समाज की बहुत-सी दुर्बलताएं इस खिचरी-कानून के कारण है । क्या इनका पुनर्निमाण नही हो सकता। प्रत्येक प्राणी, अपनी व्यक्तिगत चेतना का उदय होने पर, एक कुटुम्ब म रहने के कारण अपने को प्रतिकूल परिस्थिति मे देखता है । इसलिए सम्मिलित कुटुम्ब का जीवन दुखदायी हो रहा है। सब जैसे भीतर-भीतर विद्रोही । मुंह पर कृत्रिमता और उस घडी की प्रतीक्षा मे ठहरे हैं कि विस्फोट हो तो उछलकर चले जायं। ___माधुरी कितनी स्नेहमयी थी। मुझे उसकी दशा का जब स्मरण होता है, मन म वेदना होती है। मेरी बहन । उसे कितना दुख है । किन्तु जब देखता हूँ कि वह मुझसे स्नेह और सान्त्वना की आशा करने वाली निरीह प्राणी नही रह गयी है, वह तो अपने लिए एक दृढ भूमिका चाहती है, और चाहती है, मेरा पतन, मुझी से विरोध, मेरो प्रतिद्वद्विता । तब तो हृदय व्यथित हो जाता है। यह सब क्यो ? आर्थिक सुविधा के लिए । ___ और मां-जैसे उनके दोना हाथ दो दुन्ति व्यक्ति लूटने वाले--पकड कर अपनी ओर खोच रहे हो, द्विविधा में पड़ी हुई, दोनो के लिए प्रसनता-दोनो को आशीर्वाद देने के लिए प्रस्तुत । किन्तु फिर भी झुकाव अधिक माधुरी की और । माधुरी को प्रभुत्व चाहिए । प्रभुत्व का नथा, ओह कितना मादक है । मैंने थोडी तितली: ३०३