पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३३६

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___ बनजरिया का रूप आज बदला हुआ है। झोपडी के मुंह पर चूना, धूलभरी धरा पर पानी का छिडकाव, और स्वच्छता से बना हुआ तोरण और कदली के खम्भा से सजा हुआ छोटा-सा मण्डप, जिसम प्रज्वलित अग्नि के चारा ओर वावा रामनाथ, तितली, शला और मधुबन बैठे हुए हवन-विधि पूरी कर रहे थ । दीक्षा हो चुकी थी। रामनाथ के साथ शैला ने प्रार्थना की~ 'असतोमा सद्गमय, तमसोमा ज्योतिर्गमय, मृ यो मृगमय ।' ___एक दरी पर सामने बैठे हुए मिस्टर वाट्सन, इन्द्रदेव, अनवरी और सुखदेव चौबे चक्ति होकर यह दृश्य देख रहे थे । शैला सचमुच अपनी पीली रेशमी साड़ी में चम्पा की कली-सी बहुत भली लग रही थी। उसके मस्तक पर रोली का अरुण विन्दु जैसे प्रमुख होकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर रहा था। किन्तु मधुबन और तितली भी पीले रेशमी वस्त्र पहन हुए थे। तितली के मुख पर सहज लज्जा और गौरव था। मधुवन का खुला हुआ दाहिना कधा अपनी पुष्टि मे बडा सुन्दर दिखाई पड़ता था। उसका मुख हवन के धुएं से मजे हुए ताबे के रंग का हो रहा था। छोटी-मूंछे कुछ ताव म चढी थी। किसी आने वाली प्रसन्नता की प्रतीक्षा में आँखे हंस रही थी। वही गंवार मधुबन जैसे आज दूसरा हो गया था । इन्द्रदेव उसे आश्चर्य स देख रहे थे और तितली अपनी सलज्ज कान्ति में जैस शिशिर-कणो से लदी हुई कुन्दकली की मालिका-सी गम्भीर सौन्दर्य का सौरभ बिखेर रही थी। इन्द्रदेव उसको भी परख लेते थे। उधर मिस्टर वाट्सन शैला को कुतूहल से देख रह थे। मन में सोचत थे कि 'यह कैसा है ?' शैला के चारो ओर जो भारतीय वायुमडल हवन-धूम, फूलो और हरियाली को सुगन्ध म स्निग्ध हो रहा था, उसने वाट्सन के हृदय पर से विरोध का आवरण हटा दिया था, उसके सौन्दर्य मे वह श्रद्धा और मित्रता को आमत्रित करन लगा ! उन्होने इन्द्रदेव स पूछा-कुंवर साहब | यह जा कुछ हो रहा है, उसमे आप विश्वास करते है न ? ३०८.प्रसाद वाङ्मय