पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३८६

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शेरकाट । भला उस कौन वधक रखेगा? तुम लागो क ऊपर ता 'वेदखला' हो गई है । वनजरिया का भी वही हाल है। मैं उस पर रुपया नहीं दे सकता। __मैं इस झझट म नही पड़गा। कहकर महन्तजी ने माधा की ओर देखकर कहाऔर तुम क्या कहत हा ' रुपय दाग कि नही ? आज ही न देने के लिए कहा था? महन्तजी, आप हमारे माता-पिता है । इस समय आप न उवारगे तो हमारा दस प्राणिया का परिवार नष्ट हो जायेगा। घर को स्त्रियां रात का साग खोट कर ल आती हैं । वहा उबाल कर नमक स खाकर सा रहती है। दूसर-तीसर दिन अन्न कभी-कभी, वह भी थाहा-सा मुह म चला जाता है। हम लाग तो चाकरी-मजूरी भी नही कर सकते । मटर की फसल भी नष्ट हा गई। थाडीसी ऊख रही, उसे पेरकर सोचा था कि गुड बनाकर वेच लगे, तो आपका भी कुछ दग और कुछ बाल-बच्चा के खान क काम में आयेगा। फिर क्या हुआ, उसकी विक्री भी चट कर गय ? तुमको देना ता है नही, बात बनाने काय हो। महाराज ! मुनवां गुलोर झाक रहा था जब उसन मुना कि जमीदार का तगादा आ गया है वह लोग गुड उठाकर ले जा रह है तो घबरा गया । जलता हुआ गुड उसक हाथ पर पड गया। फिर भी हत्यारो न उसका पाना पाने के लिए भी एक भलो न छोडी। यही बाजार म पडे-खड बिकवा कर पाई-पाई ल ली । पानी के दाम मरा गुड चला गया । आप इस समय दस रुपये स सहायता न करगे तो सब मर जायंगे। बिहारी जी आपका भाग यहाँ से, चला है मुझका आशार्वाद दन । पाजी कही का । देना न लना, झूठ-मूठ ढग साधन आया है । पुजारी ! काई यहाँ है नही क्या ?--कहकर महन्तजी चिल्ला उठे। भूखा आर दरिद्र माधा सन्न हा गया। महन्त फिर बडवडान लगा-इनक बाप न यहाँ पर जमा कर दिया है, बिहारीजी क पुछल्ल । भयभीत माधा लडखडाते पैर स चल पड़ा। उसका सिर चकरा रहा था। उसन मन्दिर क सामने आकर भगवान को देखा। वह निश्चल प्रतिमा ! ओह करुणा कही नहीं । भगवान के पास भी नही । माधो किसी तरह सडक पर आ गया। वहा मधुबन खडा था। उसन दखा कि माधा गिरना चाहता है। उस सम्हाल कर एक बार क्रूर-दृष्टि स उस चून स पुते हुए झकाझक मन्दिर की आर दखा। ___मधुवन गाढ़े की दाहर म अपना अग छिपाय था । वह सबसे छिपना चाहता था। उसने धीरे से माधा को मिठाई की दूकान दिखाकर कुछ पैस दिये आर ३६० प्रसाद वाङ्मय