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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३९६

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मैं तो समझता हूँ कि तुमने कुछ भूल नहीं की। मुझे उसके सम्बन्ध मे कुछ कहना नहीं था। हां, यह बात दूसरी है कि तुम यहाँ क्यो नही आ गयी। उसे लिखाते-पढाते रहने पर भी तुम एक बार यहाँ आ सकती थी। किन्तु तुमने सोचा होगा कि इन्द्रदेव स्वय अपने लिए तग होगा, मैं वहाँ चलकर उसे और भी कष्ट दूंगी। यही न? तो ठीक तो है । अभी मेरी बैरिस्टरी बच्छी तरह नही चलती, तो भी इन कई महीनो मे सादगी से जीवन-निर्वाह करने के लिए मैं रुपये जुटा लेता हूँ। मुझे सम्पति को आवश्यकता नही शैला। शेला ने देखा, इन्द्रदेव के मुंह पर दृढ उदासीनता है । वह मन-ही-मन काप उठी। उसने सोचा कि इन्द्रदेव को आर्थिक हानि पहुंचाने में मेरा भी हाथ है। वह कुछ कहना ही चाहती थी कि इन्द्रदेव बोच म ही उसे रोककर कहने लगे-मैं सकुचित हो रहा था। मुझे यह कहकर मां का जी दुखाने में भय होता था किमैं सम्पत्ति और जमीदारी से कुछ ससर्ग न रखूगा । अच्छा हुना कि उन्हों लोगा ने इसका आरम्भ किया है । तुमको अब यहां कुछ दिनो तक और ठहरना होगा, क्याकि नियमपूर्वक लिखा-पढी करके मैं समस्त अधिकार और अपनी सम्पति मां को दे देना चाहता हूँ। मेरे परम आदर की वस्तु 'मां का स्नेह जिसे पाकर खोया जा सके, वह सम्पत्ति मुझे न चाहिये । और मैं उस लेकर भी क्या करूँगा ? अधिक धन तो पारस्परिक बन्धन में रहने वाल को शैला चौंककर बाल उठी-तो क्या तुम सन्यासी हाना चाहते हा ? इन्द्रदेव ! अन्त में यह क्या कलक भी मुझका मिलगा। इन्द्रदेव इस अप्रिय प्रसग से ऊब उठे थे। इसे बन्द करन क लिए कहाउच्छा, इस पर फिर वाते होगी। अभी तो चलो, वह देखो, भाभी का नौकर बुलाने के लिए आ रहा होगा । जाओ, कपडा बदलना हो तो बदल र झटपट तैयार हो लो। शेला हंस पड़ी। उसन पूछा-तो क्या यहां किसी की साड़ियां भी मिल जायेंगी? मुझे तो तुम्हारी गृहस्य-बुद्धि पर इतना भरोसा नहीं ! इन्द्रदेव लज्जित-स पास उठे । शैला हाय-मुंह धोन क लिए चली गई। इन्द्रदेव क्रमश उस धन हाउ हुए अन्धकार म निश्चप्ट वैठे रहे । शैला भी आकर पाम ही कुों पर बैठकर तितली को घाटी-सी मुन्दर गृहस्थी का कालानिर चित्र यीच रही थी। दासी लालटेन लेवर औला का उनान के लिए ही बाई। इन्द्रदेव न रहा-चलो शेला! दाना सवार नन्दरानो गर म पढेच । दानान म सम्बन विधा था । ३७२: प्रसार पामय