पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३९८

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कहाँ भाभी ! मैंने तो अभी कुछ भी नहीं खाया। अभी मिठाइयाँ तो वाकी ही है । तिस पर भी मैं पेटू कहा जाऊँ ? आश्चर्य ! अरे राम ! मै खाने के लिए थोडे ही कह रही है। अभी तो तुमने कुछ खाया ही नहीं ! मेरा तात्पर्य या तुम्हारे ब्याह से। ओहो ! तो में देखता हूँ कि कोई मूर्ख कुमारी मुझसे ब्याह करने की भीख मांगने के लिए तुम्हारे पास पल्ला पसार कर आई यो न ! उसको समझा दो भाभी । में तो उसके लिए कुछ न कर सकूँगा। __ नन्दरानी हंसने लगी। शैला से उसने पूछा- क्यो, आप तो कुछ ? जी नही; मुझे कुछ न चाहिए ! कहकर शेला ने उसकी ओर दीनता से देखा । मुकुन्दलाल ने इन्द्रदेव से कहा तुम ठीक कहते हा इन्द्रदेव, मैं भूल कर रहा था। स्त्री के लिए पर्याप्त रुपया या सम्पत्ति की आवश्यकता है ! पुरुष उसे घर मे लाकर जब अल देता है तब उसकी निज की आवश्यकताओ पर बहुत कम ध्यान देता है। इसलिए मेरा भी अव यही मत हो गया है कि स्त्री के लिए सुरक्षित धन की व्यवस्था होनी चाहिए । नहीं तो तुम्हारी भाभी की तरह वह स्त्री अपने पति को दिन-रात चुपचाप कोसती रहगी । नन्दरानी अप्रतिभ-सी होकर वाली यह लो, अब मुझी पर बरस पडे । मुकुन्दलाल ने और भी गभीर होकर कहा-अच्छा इन्द्रदेव ! तुमसे एक बात कह ? मिस शैला के सामने भी वह बात कहने में मुझे सकोच नही । यह नो तुम जानते हो कि मैं धीरे-धीरे ऋण मे डूब रहा हूँ। और जीवन के भोग के प्याले को, उसका सुख बढाने के लिए, बहुत धीरे-धीरे दस-दस बीस-बीस वूद का चूंट लेकर खाली कर रहा हूँ। होगा सो तो होकर ही रहेगा। किन्तु तुम्हारी भाभी क्या कहेगी। मैं चाहता हूँ कि ये दोनो छोटे बंगले मैं नन्दरानी के नाम लिख दूं। और फिर एक बार विस्मृति की लहर में धीरे-धीरे डूबूं और उतराऊँ। ___नन्दरानी की आँखो से दो बूंद आंसू टपक पडे। न जाने कितनी अमगल और मगल की कोमल भावनाएं ससार के कोने-कोने से खिलखिला पड़ी । उसने मुकुन्दलाल का प्रतिवाद करना चाहा, परन्तु नारी-जीवन का कैसा गूढ रहस्य है कि । वह स्पष्ट विरोध न कर सकी । इतने मे इन्द्रदेव ने कहा-भाई साहब मुझे एक 1 रजिस्ट्री करानी है ! मैं अपनी समस्त सम्पत्ति मां के नाम लिख देना चाहता हूँ। क्योकि.. शैला ने तौलिये से हाथ पोछते हुए इन्द्रदेव की ओर देखा। उसने अभीअभी इन्द्रदेव के अभावो का दृश्य देखा है। उसने सम्पत्ति से और उसकी आशा से भी वचित होने को मन मे ठानी है । ३७४ : प्रसाद वाङ्मय