पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४३१

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मालगुजारी लिया करे। कहते हुए तितली ने व्यग से इन्द्रदेव की ओर देखा और फिर उसने कहा-क्षमा कीजिए, मैंने विवश होकर यह सब कहा । इन्द्रदेव हतप्रभ हो रहे थे, उन्होंने कहा-अरे, मैं तो अब जमीदार नही हूँ। हाँ, आप जमोदार नहीं है तो क्या, आपने त्याग किया होगा । किन्तु उमसे किसानो को तो लाभ नही हुआ। -घुटते ही तितली ने कहा । __ उसका बच्चा रोने लगा था । एक बडी-सी लडकी उसे ल कर राजा के पास चली गई। किन्तु तुम तो ऐसा स्वप्न देख रही हो जिसम आँख खुलने की देर है ।वाट्सन ने कहा। यह ठीक है कि मरने वाले का कोई जिला नहीं सकता। पर उस जिलाना ही हो, तो कही अमृत खोजने के लिए जाना पडेगा ।-तितली ने कहा। ____उधर शैला मौन होकर तितली के उस प्रतिवाद करने वाले रूप को चकित होकर देख रही थी। और इन्द्रदेव सोच रहे थे-तितली । यही तो है, एक दिन मेरे साथ इसी के ब्याह का प्रस्ताव हुआ था। उस समय मैं हंस पड़ा था, सम्भवत मन-ही-मन । आज अपनी दुर्वलता मे, अभावो और लधुता मे, दृढ़ होकर खडी रहने में यह कितनी तत्पर है । यही ता हम खाज रहे थे न । मनुष्य गिरता है । उसका अन्तिम पक्ष दुर्बल है~सम्भव है कि वह इसीलिए मर जाता है । परन्तु परन्तु जितन समय तक वह ऐसी दृढता दिखा सके, अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सके, उतने क्षण तक क्या जिया नही । मैं तो समझता हूँ कि उसके जन्म लेने का उद्देश्य सफल हो गया। तितली वास्तव मे महीयसी है, गरिमामयी है । शैला । वह अपने लिए सब कुछ कर लेगी। स्वावलम्बन । हाँ, वह उसे भी पूरा कर लेगी। किन्तु स्त्री का दूसरा पक्ष पति ! उसके न रहने पर भी उसकी भावना को पूरी करते रहना, शैला से भी न हो सकेगा। वह अपने पैरो पर खडी हो सकती है, किन्तु दूसरे को अवलम्ब नहीं दे सकती। ___ वाट्सन भी चुपचाप होकर सोच रहे थे। उन्होने कहा-मैंने कागज-पत्र दखकर निश्चय कर लिया है कि शेरकोट पर तुम्हारा स्वत्व है । क्या तुम उसके बदले यह सटी हुई परती ले लोगी ? मैं जमीदार को इसके लिए बाध्य करूंगा। बिना रुके हुए तितली ने कहा-वह मेरा घर है, खेत नही, उसको मैं उसके ही स्वरूप में ले सकती हूँ। उससे बदला नही हो सकता । वाट्सन हतबुद्धि होकर चुप हो गय । शैला न तितली का ईयां स देवा । यह गंवार लडको। अपनी वास्तविक स्थिति मे कितनी सरलता से निर्वाह कर रही है । सो भी पूरी स्वतन्त्रता के साथ ! और मैं, मैंने अपना जीवन, थाडा-सा तितली: ४०७