पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४९

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गुलेनार ने पूछा-चुप क्यो हो गये, आप ही बताइए, निकलकर कहा जाऊँ और क्या करूं? अपने माता पिता के पास । मैं पहुँचा दूंगा, इतना मेरा काम है। वडी भोली दृष्टि से देखते हुए गुलेनार ने कहा-आप जहां कहे मैं चन सक्ती हूँ। अच्छा पहले यह तो बताओ कि वैसे तुम काशी से यहां पहुंच गई हो ? किमी दूसरे दिन मुनाऊँगो, अम्मा आती होगी। अच्छा, तो आज मै जाता हूँ। जाइए पर इस दुखिया का ध्यान रखिए । हा अपना पता तो बताइए मुझे कोई अवसर निकलने का मिला, तो मै कैस मूचित करूंगी? मगल न एक चिट पर पता लिखकर दे दिया, और कहा-मैं भी प्रवन्ध करता रहूँगा । जब अवसर मिले, लिखना, पर एक दिन पहले । __ अम्मा के पैरो का शब्द सीढियो पर मुनाई पडा और मगल उठ खडा हुआ। उसके आते ही उसने पाच रुपये हाथ पर धर दिये। अम्मा ने कहा—वाबू साहब, चले कहाँ । वैठिए भी। नही, फिर किमी दिन आऊगा, तुम्हारी वेगम माहवा तो कुछ बोनती ही नही, इनके पास बैठकर क्या करूंगा। मगल चला गया। अम्मा क्रोधः मे दाँत पीमती हुई गुलेनार को घूरने लगी। दूसर-तीसरे मगन गुनेनार के यहाँ जान लगा, परन्तु वह बहुत सावधान रहता । एक दुश्चरित युवक इन्ही दिना गुलनार के यहां आता। कभी-कभी मगल से उमसे मुठभेड हो जाती, परन्तु मगल ऐसे कैंडे से वात करता कि वह मान गया । अम्मा न अपने स्वाथ-साधन के लिए इन दोना म प्रतिद्वन्द्विता चला दी। युवक शरीर म हृष्ट पुष्ट कसरती था। उसक ऊपर क होठ मसूडो क ऊपर ही रह गय थे। दांता की श्रेणी सदैव खुली रहती, उसकी लम्बी नाक और लाल आँख बडी डरावनी और रोवोली थी, परन्तु मगल की मुस्कराहट पर वह भौचक्-सा रह जाता और अपन व्यवहार से मगल को मित्र बनाये रखने को चप्टा किया करता । गुलेनार अम्मा को यह दिखलाती वि वह मगल म बहुत बोलना नहीं चाहती। ___ एवं दिन दोना गुलेनार के पास बैठे थे। युवक ने, जो अभी अपने एक मित्र के माथ दूसरी वेश्या के यहां से आया था-अपना डोग हांकते हुए मित्र के लिए कुछ अपशब्द कहे, फिर उसने मगल स कहा-वह न जान क्या उस मुडेल के कराल १६