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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५१

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ले चला । चारवाग स्टेशन पर दहरादून जान वाली गाडी खडी थी। तांगे वाल को पुरस्वार देकर मगल सीधे गाडी म जाकर बैठ गया। सीटी बजी, सिगनल हुआ, गाडी खुल गई। तारा, थोडा भी विलम्ब से गाडी न मिलती। ठीक समय से पानी आ गया । हा, यह तो कहो, मेरा पत्र कब मिला ? आज नौ बजे । मै सामान ठीक करके सध्या की बाट देख रहा था । टिकट ल लिये थे और ठीक समय पर तुमस भेट हुई । कोई पूछे तो क्या कहा जायगा? अपन वेश्यापन के दो-तीन आभूपण उतार दा, और किसी क पूछने पर कहना-अपन पिता के पास जा रही हूँ, ठीक पता बताना । ___ तारा ने फुरती से वैसा ही किया । वह एक साधारण गृहस्थ बालिका बन गई। वहा पूरा एकान्त था, दूसर याना न थे । दहरा-एक्सप्रेस बैग स जा रही थी। मगल न कहा-तुम्हे मूझी अच्छी। उस तुम्हारी दुप्टा अम्मा को यही विश्वास होगा कि कोई दूसरा ही ल गया । हमारे पास तक तो उसका सदह भी न पहुँचेगा। ____ भगवान् की दया से नरक से छुटकारा मिला। आह कैसी नीच कल्पनाआ स हृदय भरा जाता था--सन्ध्या मे बैठकर मनुष्य-समाज की अशुभ कामना करना, उसे नरक क पथ की आर चलन का सकेत बताना, फिर उसी स अपना जीविका । तारा, फिर भी तुमन अपन धर्म की रक्षा की । आश्चर्य । यही कभी-कभी मैं भी विचारती हूँ कि ससार दूर स, नगर, जनपद सोधश्रेणी, राजमार्ग और अट्टालिकाओ स जितना शोभन दिखाई पडता है, वैसा ही सरल और मुन्दर भीतर नहीं है। जिस दिन मैं अपने पिता से अलग हुइ, एस-ऐसे निर्लज्ज और नीच मनावृतिया के मनुप्या स सामना हुआ, जिन्हें पशु भी कहना उन्ह महिमान्वित करना है । हाँ, हाँ, यह तो कहो, तुम काशो स लखनऊ कैस आ गई? तुम्हारे सामन जिम दुष्टा ने मुझे फंसाया, वह स्त्रिया का व्यापार करने वालो एक सस्या की कुटनी थी। मुझे ले जाकर उन सवा न एक घर में रक्खा, जिसम मरी ही जैसी कई अभागिने थी, परन्तु उनम सव मरो जैसी रोन वाली न थी । बहुत-सी स्वेच्छा से आई थी और कितनी ही कलव नगन पर अपन घर ककाल २१