पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५४

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तारा क्रोध और ग्लानि से फूल रही थी। निराशा और अन्धकार में विलीन हो रही थी। गाड़ी दूसरे स्टेशन पर रुकी। सहसा यात्री उतर गया। मगलदेव कर्तव्य-चिन्ता में व्यस्त था। ताग भविष्य को कल्पना कर रही थी। गाडी अपनी धुन म गम्भीर तम का भेदन करती हुई चलने लगी।