पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५८

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निर्भर करता है । इसीलिए उनम इतनी दृढ़ता होती है । उन्ह विश्वास होता है कि मनुष्य कुछ नही कर सकता--विना परमात्मा को आज्ञा क । और क्वल इसी एव विश्वास के कारण वे रासार म सतुष्ट हैं। परसनेवाल ने कहा-मूंग का हलवा ले आऊँ ।नीर म ताअभी कुछ विलम्ब ब्रह्मचारी न कहा-भाई हम जीवन का मुख के अच्छे उपकरण ढूंढन म नही बिताना चाहत । जो कुछ प्राप्त है, उगी म जीवन मुखी हाकर वीत, इसी को चेष्टा करते हैं । इसीलिए जा प्रस्तुत हो, ल आओ। सब लोग हंस पड़े। फिर ब्रह्मचारी न कहा-महाशयजी आपन एव वड धम का बात कही है। म उसका कुछ निराकरण कर दना चाहता हूँ। मुसलमान-धम निराशावादी हात हुए भी क्या इतना उनतिशील है, इसका कारण तो आपन स्वय कहा है कि ईश्वर म विश्वास परन्तु इसक साथ उनकी सफलता का एक और भी रहस्य है । वह है उनकी नित्य-क्रिया पी नियम-बद्धता, क्याकि नियमित रूप स पग्मास्मा की कृपा का लाभ उठान | लिए प्रार्थना करनी आवश्यक है । मानव-स्वभाव दुर्वलताआ का सक्तन है, मत्कम विशप हान पात नही, क्याकि नित्य-क्रियामा द्वारा उनका अभ्यास नही। दूसरी आर ज्ञान यी कमी स ईश्वर-निष्ठा भी नहीं। इसी अवस्था का देखते हुए ऋपि न यह मुगम आय-पथ बनाया है। प्रार्थना नियमित रूप से करना, ईश्वर म विश्वास करना यही तो आय-समाज वा सर्देश है । यह स्वावलम्बपूर्ण है, यह दृढ विश्वास दिलाता है कि हम सत्कम करगे, ता परमात्मा की कृपा अवश्य होगी । सब लोगा न उन्हे धन्यवाद दिया। ब्रह्मचारी न हंसकर सबका स्वागत किया । अब एक क्षणभर के लिए विवाद स्थगित हा गया और भोजन म सब लोग दत्तचित्त हुए । कुछ भी परसन के लिए जब पूछा जाता तो वे 'हूँ वहत । कभी-कभी न लेने के लिए भी उसी का प्रयोग होता । परसनवाला घबरा जाता और भ्रम से उनकी थाली म कुछ-वा-कुछ डाल देता, परन्तु वह सब यथास्थान पहुँच जाता । भोजन समाप्त करके सब लोग यथास्थान बैठे। तारा भी देविया के साथ हिल-मिल गई। चाँदनी निकल आई थी । समय मुन्दर था । ब्रह्मचारी न प्रसग छेडते हुए कहा-मगलदेवजा | आपन एक आय-बालिका का यवना स उद्धार करके वडा पुण्यकर्म किया है । इसके लिए आपको हम सब लोग वधाई देते है। वदस्वरूप--और इस उत्तम प्रीतिभोज के लिए धन्यवाद । २८ प्रसाद वाङ्मय