पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/६०

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समय के साथ-साथ तारा अधिकाधिक गृहस्थी में चतुर और मगल परिश्रमी होता जाता था। सवरे जलपान बनाकर तारा मगल का दती, समय पर भोजन और ब्यालू । भगल के घेतन मे मब प्रबन्ध हो जाता कुछ बचता न या । दोना का बचान की चिन्ता भी न थी परन्तु इन दिना एक वात नई हा चली । तारा मगल के अध्ययन में बाधा डालने लगी। वह प्रात उसके पास ही बैठ जाती। उसकी पुस्तका को उलटती यह प्रक्ट हो जाता कि तारा मगन स अधिव वात-चीत करना चाहती है और भगल भिी-कभी इसम घबरा उठता। वमन्त का प्रारम्भ या पत्त दखत-हो-दखत एठते जात थ और पतझड + बीहड समीर से वे झडकर गिरते थ । दोपहर था । कभी-कभी बीच मे कोई पक्षी वृक्षो की शाखो म छिपा हुआ वोल उठता । फिर निस्तब्धता छा जाती। दिवस विरस हो चले थे । अँगडाइ लेकर तारा न वृक्ष के नीच बैठे हुए मगन मे कहा---- आज मन नहीं लगता है। मरा भी मन उचाट हो रहा है। इच्छा होती है कही घूम आऊँ परन्तु तुम्हारा ब्याह हुए बिना मैं कही जा नही मक्ता । मै तो ब्याह न करूंगी। क्यो ? दिन तो बिताना ही है कही नौकरी कर लूगी। व्याह करन की क्या आवश्यकता है? नही तारा यह नही हो सकता। तुम्हारा निश्चित लक्ष्य बनाये बिना वर्तव्य मुझे धिक्कार देगा। मरा लक्ष्य क्या है अभी मैं स्वय स्थिर नही कर मवी। मैं स्थिर करूंगा। क्या यह भार अपन ऊपर तत हो ? मुझे अपनी धारा म बहन दा। मा नही हो सकगा। मैं कभी-कभी विचारती हूँ कि छायाचित्र सदृश जनस्रोत म नियति के पवन को थपेडे लग रही है वह तरग-सकुन हाकर झूम रहा है । और मै एक तिनके के सदृश उमी म इधर-उधर वह रही है। कभी भंवरो म चक्कर खाती हैं कभी लहरा म नीचे ऊपर होती है । कही कून-विनाग नही | -- कहते-कहते ताग की आस्व छलाठला उठी। न धवडाओ तारा भगवान् मव के सहायक है-~मगन ने कहा। और जी बहलान के लिए कही घूमन का प्रस्ताव किया। ३० प्रसाद वाडमय