पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/८०

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कर रही है, वे मनुष्य, कुत्ता के साथ जूठी पत्तला के लिए लहे, यही ता तुम्हारे धर्म का उदाहरण है । ____मगल भीतर जाकर विछावन पर पड रहा। उस कुछ सरदो मालूम हान लगी । वह चद्दर ओढकर एकान्त वा अनुभव करन लगा, परन्तु विजय वही खडा रहा । उसने सहसा दया-एव युवती गिर पड़ी। नौकरो को ललकारा—उस उठाने के लिए । किशोरी का भी उस स्त्री पर दया आई । वह भूख और चाट स वेहोश भीतर उठा लाई गई । जल के छोटे दिय गय । सज्ञा लौट आई। उसन आँखे खोल दी। किशोरी को उस पर ध्यान दत देखकर विजय अपन समरे म चला गया। किशोरी ने पूछा-कुछ खाआगी। युवती ने कहा-~~हाँ, मैं भूपी अनाथ हूँ। किशोरी को उसकी छलछलाई आँख देखकर दया आ गई। कहा–दुखी न हो, तुम यही रहा करो। फिर मुंह छिपाकर पडे । उठो, में अपने बनाय हुए कुछ चित्र दिखाऊँ। बोलो मत विजय | कई दिन के बाद भोजन करने पर आलस्य मालूम हा पडे रहने स तो और भी मुस्ती बढेगी। मैं कुछ घटा तक सा लेना चाहता है। विजय चुप हो गया। मगलदव के व्यवहार पर उसे कुतूहल हा रहा था। वह चाहता था कि वातो ही म उसके मन की अवस्था जान ले परन्तु उसे अवसर न मिला । वह भी चुपचाप सो रहा । नीद खुली, तब लम्प जला दिये गये थे। दूज का चन्द्रमा पीला हाकर अभी निस्तेज था, हल्की चांदनी धीरे-धीरे फैलने लगी। पवन म कुछ शीतलता थी। विजय ने आँखे खोलकर देखा, मगल अभी पड़ा था। उसने जगाया और हाथमुंह धोने के लिए कहा। दोनो मित्र आकर पाई-बाग में पारिजात के नीचे पत्थर पर बैठ गये । विजय ने कहा-एक प्रश्न है। मगल ने कहा-प्रत्येक प्रश्नो के उत्तर भी हैं, कहा भी। क्यो तुमने रक्षा-कवच तोड डाला? क्या उस पर से विश्वास उठ गया ? नही विजय, मुझे उस सोने की आवश्यकता थी। -मगल ने बडी गम्भीरता स कहा।