पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/९

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उत्तरा से वे सन्तुष्ट नही थे। इन मनोपियो को वाणियां ककाल और तितली म सुनाई परती हैं। कुछ उत्तर तो वे महात्मा गांधी को तरह भी देना चाहते है परतु कुछ उनसे भिन्न है । इरावती महात्मा गांधी के द्वारा दिये गये अहिंसा के उत्तर के प्रतिकूल है। प्रसाद की यह चिन्तनशीलता प्रेमचन्द के वाद उपन्यासो का विषय क्यो बनी या हिन्दी उपन्यास प्रसाद के रास्ते क्यो चला प्रेमचन्द के रास्ते क्यो नही ? इस प्रकार का प्रश्न हो सकता है परतु यहाँ उसका औचित्य नहीं है। वस्तुत सामाजिक स्थिति की यह पहचान प्रसाद को एक प्रकार के संकल्पात्मकता की तरफ ले जाती है और वह सकल्प उनकी काव्यात्मक प्रवृत्ति के कारण संकोच के साय उप यासो म भी दिखाई पड़ता है । 'वेदना' की इस विवृत्ति का कारण क्या है ? और साहित्य का समाज बीज क्या है ? इसके लिए निम्न उद्धरण महत्वपूर्ण है। ___ "हमारी धार्मिक भावनाएं बंटी हुई हैं, सामाजिक जीवन दम्भ से और राजनाविक क्षेत्र कलह और स्वार्थ से कहा हुआ है। शक्तियां हैं पर उनका कोई केद्र नही किस पर अभिमान हा किसके लिए प्राण दूं।' (दासी-आंधी, पृ० ५६)। "क्या, षया हिन्दू होना परम सौभाग्य की बात है। जब उस समाज का अधिकाश पददलित और दुर्दशाग्रस्त है, जब उसके अभिमान और गौरव की वस्तु धरापृष्ठ पर नही बची-उसको संस्कृति विडबना, उसकी सस्या सारहीन, और राष्ट्र वौद्धो के शून्य के सदृश बन गया है, जब ससार को अन्य जातियां सार्वजनिक प्रातृभाव और साम्यवाद को लेकर खडी हैं तब आपके इन खिलौना (मूर्तियो) से भला उनकी संतुष्टि होगी।' (ककाल, पृ० ५६)। "भारतवप आज वो और जातियो के बधन म जकड कर कष्ट पा रहा है और दूसरो को कष्ट दे रहा है । यद्यपि अन्य देशों में भी इस प्रकार के समूह बन गय हैं, परन्तु यहां इसका भीषण रूप है। यह महत्त्व का संस्कार अधिक दिना तक प्रभुत्व भोग कर खोखला हो गया है । दूसरो को उन्नति से उसे डाह होने लगा है । समाज अपना महत्त्व धारण करने की क्षमता खो चुका है परतु व्यक्तियो को उन्नति का दल बनाकर सामूहिक रूप से विरोध करने लगा है प्रत्येक व्यक्ति अपनी झूठी महत्ता पर इतराता हुआ दूसरे को नोचा-~-अपन से छोटा समझता है जिससे सामाजिक विषमता का विपमय प्रभाव फैल रहा है।" (ककाल, पृ० २०२)। प्राक्कथन १३