पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६९९

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[वनलता के संकेत करने पर प्रेमलता सलज्ज अपने हाथों से आनंद को पिलाती है-आश्रम की अन्य स्त्रियां पहुंचकर गाने लगती हैं, रसाल, मुकुल और कुंज भी आकर फूल बरसाते हैं] मधुर मिलन कुंज में-. जहाँ खो गया जगत का, सारा श्रम-संताप । सुमन खिल रहे हों जहाँ, सुखद सरल निष्पाप ॥ उसी मिलन कुंज में- तर लतिका मिलते गले, सकते कभी न छुट । उसी स्निग्ध छाया तले.पी. लो"न “एक घुट ॥ एक बूंट : ६७९