पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जिस सोम का व्यवहार प्राचीन भारत में होता.था,.वह काश्मीर के उच्च शिखरों पर उत्पन्न होता था और इन हरी-भरी गहरी घाटियों तथा उच्च शिखरों की भूमि में आर्य लोग ऋग्वेद के मंत्रों के संकलन-काल से भी पहले रहते थे। इसलिये देवों का स्वर्ग तथा पारसीकों का प्रथम आर्य-निवास (Ariyana. Vaijo) अफगानिस्तान, कश्मीर तथा बलख के बीच की रमणीय भूमि थी। इसी की समीपवर्ती शैलमाला तथा उच्च भूमि मेरु के परिवार रूप से आर्य-साहित्य मे अत्यन्त पवित्र मानी गयी है । लिग पुराण में लिखा है- मानसोपरि माहेंद्री प्राच्यां मेरोः स्थिता पुरी । दक्षिणे भानुपुत्रस्य वरुणस्य तु वारुणे ॥ सौम्ये सोमस्य विपुला तासु दिग्देवताः स्थिताः । अमरावती संयमिनी सुषा चैव विमा क्रमात् ॥ दक्षिणां प्रक्रमेद् भानुः क्षिप्तेषुरिव धावति ।। मानसरोवर के ऊपर मेरु के पूर्व महेंद्र की नगरी अमरावती, मेरु के दक्षिण यम की नगरी संयमिनी, मेरु के पश्चिम मे वरुण की नगरी सुषा Sussa ?) और मेरु के उत्तर मोम की नगरी विभा है। मेरु को प्रदक्षिणा करते हुए सूर्य क्रम से इन नगरियो के ऊपर से जाते है । विष्णु पुराण (अध्याय ९) मे भी इसी तरह का वर्णन है। छठे लोक की टीका में- "सूर्य प्रत्यहं मेरु प्रदक्षिणीकुर्वन्नपि" इत्यादि से मेरु की प्रदक्षिणा का स्पष्ट उल्लेख है, सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने का यही पौराणिक कारण बतलाया गया है। श्री शंकराचार्य ने-"स यावदादित्य उत्तरत उदेता दक्षिणतोऽस्तमेता विस्ता- वदूर्ध्व उदेताहिस्तमेता माध्यानामेव तावदाधिपत्यम् स्वाराज्य पर्यंता।" (छान्दोग्य ३-१०-४) के भाप्य मे इमका यथाकथंचित् समाधान करते हुए लिखा है- "मान- सोत्तर मूर्धनि मेरो प्रदक्षिणावृत्तितुल्यत्वात् ।" फिर आगे चलकर लिखते है- 'सर्वेषा च मेरुरुत्तरतो भवति ।" मानसरोवर के उत्तर मे मेरु की स्थिति मानकर और सूर्य 1806, placed the cradl, of mankind in the valley of the Kashmere which he identified with paradise (I he origin of Aryans). %. The Som used in India certainly grew on mountains probably in the Himalyan highlands of Kashmere. It is certain that Aryan tribes dwelt in this land of tall summits of deep valleys in very early times, probably earlier than that when the Rig hymns were ordered or collected-Ragozin 170 Vedic India. ११८: प्रसाद वाङ्मय