पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२६४

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(७-४ शतपथ)। इड़ा देवताओं को स्वसा थी। मनुष्यों को चेतना प्रदान करने वाली थी। इसीलिए यज्ञों मे इड़ा-कर्म होता है। यह इड़ा का बुद्धिवाद श्रद्धा और मनु के बीच व्यवधान बनाने में सहायक होता है। फिर बुद्धिवाद के विकास में अधिक सुख की खोज में, दुःख गिलना स्वाभाविक है। यह आख्यान इतना प्राचीन है कि इतिहास मे रूपक का भी अद्भुत मिश्रण हो गया है। इसीलिए मनु, श्रद्धा और इड़ा इत्यादि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए --सांकेतिक अर्थ की भी अभिव्यक्ति करें तो मुझे कोई आपत्ति नही। मनु अर्थात् मन के दोनों पक्ष हृदय और मस्तिष्क का संबन्ध क्रमशः श्रद्धा और इड़ा से भी सरलता से लग जाता है । 'श्रद्धां हृदय्य याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु' (ऋग्वेद १०-१५१-४)। इन्ही सबके आधार पर 'कामायनी' की कथा-सृष्टि हुई है। हाँ, 'कामायनी' को कथा-शृंखला मिलाने के लिए कही-कहीं थोडी-बहुत कल्पना को भी काम में ले आने का अधिकार, मैं नही छोड सका हूँ। umeanza Dar १६४ : प्रसाद वाङ्मय