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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३०१

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~-4ह हमारे युग-प्रवर्तक प्रसावजी के शुभ्रे, शान्त सौन्दर्य का पवित्र यशःकाय है, जिसे हिन्दी-साहित्य में और सम्भवतः विश्व. साहित्य में भी जरामरण भय नहीं है। -छायावाद केवल स्वप्न सम्मोहन बनकर जाता, यदि प्रसादजी कामायनी जैसे महान् काव्य- सृष्टि की अवतारणा जाते । -सुमित्रानन्दन पन्त 'कानन कुसुम' में छायावादी कविता जो स्रोत निकला वह आगे बढ़कर निर्झर राशि-राशि जल प्रपात की तरह भरना के रूप बहने लगा। . 'मरना' नामक कविता-संग्रह में विशुद्ध छायावाद का रस हिन्दी साहित्य में प्रथम बार परिपूर्ण रूप छलकता हुआ दिखायी दिया। -इलाचन जोशी