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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३७२

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हल्का रंग उनके ओठों को ताजगी और चमक दिये रहता था। प्रसादजी घर मैं प्राय खद्दर के कुर्ते और धोती मे रहा करते थे, परन्तु बाहर निकलने पर रेशमी कुर्ता, रेशमी गाँधी टोपी, महीन खद्दर की धोती, 'शमी चादर वा दुपट्टा, फुल स्लीपर जूते और एक छडी हाथ मे रहती थी। प्रसादजी को छड। रसने का विशेष शौक था, यद्यपि वह पूरी तरह अलकार का ही काम देती थी। एक बार जब आचार्य श्यामसुन्दरदास जी ने उन्हे मसूरी से लाकर एक सुन्दर पहाडी छडी भेट की थी, तब प्रसादजी बडे प्रमन्न हुए थे और ममी मित्रो ने बारी-बारी से दिखाकर ही उन्हे संतोष हुआ था। मदिर, फुल बारी और आखाडा, प्रमाद-गृह में तीन सवप्रिय अग रहे है । प्रसादजी अपने मित्रो को --जब वे अ ले दुले आते थे - जपने साथ ले जाकर फुलवारी मे ही बैठाते थे, यही बातची। चलती थी। अधिक संख्या होने पर वे मित्रो के लिये बैठक खुलवाने थे। फुलवारी मे ही अखारा था और उसी मे एक शीर्ष पर शिव-मदिर था। अवार्ड की सवमे अधि7 स्मरणीय वस्तु व मुगदर थे, जिनका वजन देखकर यह अनुमान वरना •ठिन हो जाता था कि प्रसाद-जैसे कलाकार भी उन्हे भांजते रहे होगे । परन्तु बात सच है, प्रसाद गी पतलाते ये कि वे मुगदर उन्ही के भॉजने के लिए बनाये गा | गेर एक पहलवान उन्हे इसकी शिक्षा देने के लिए आया करता था। मन्दिर मे पूजा नित्य होनी थी परन्तु उत्तर आयोजन वष ने एक ही दो बार हुआ करते थे। प्रसादजी शै ये और बड़ी श्रद्वा ये शनी भावना करते थे । उन्हे गिव-मम्वन्धी भारतीय ननिम्पत्ति । 7 ? यि थी। शार मे मम्बन्ध रखनेवाखे पौगणिक प्रती को रुचि और मनोयोग मे पमझने गौर समझाने की चेष्टा करते थे । Tर जा के बाद वे tण · चमन रिपूर्ण चरित्र । प्रशमक ओर श्रद्वालु थे। पिछले दिना नि इन्द्र के चरिकी मार रूप स नाकृष्ट हुए थे और उस पर एक नाटक तिखन का भी पिर रते थे। यह कार्य वे परा न कर पाये। परन्तु अपने निबन्धा मे उन्होने इस बात की स्पाट सवना दी है कि आनन्ददायी और शक्तिवादी विचारधारा के प्राची तम प्रतिनिधि इन्द्र ही थे और वर्तमान भारतीय जीवन में इन्द्र के उम स्वरूप का, देश की रक्षा का दायित्व रखने- वाले नवयुवको के लिए विशेष महत्व है। अग्वाडे और मदिर से भी कदाचित् अधिक प्रिय प्रसादजी को उनकी फुलवारी थी, जिममे एक-न-एक चीज बोने और दिखाने का शौक उन्हे अंत तक रहा। प्रमादजी की वह वाटिका बहुत बडी न थी न विशेष मज्जित ही, फिर भी इसके प्रति उनका एक अनोया अनुराग था। कदाचित् इस वाटिका से उनकी ६८. प्रसाद वाङ्मय