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है कि ५७ ईसवीय पूर्व में मालव के प्रथम विक्रमादित्य हुए और दूसरे विक्रमादित्य का समय ३८५ (४००?) ईसवीय से ४१३ ईसवीय तक है। इनका सम्पूर्ण नाम श्री चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य है । ये मगध के सम्राट् थे। सम्भवतः इन्होंने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाई थी। तीसरे विक्रमादित्य श्री स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य थे। वर्तमान मालव के प्रधान नगर उज्जयिनी को उन्होंने अपनी राजधानी बनायी थी। गुप्त राजवंश के अन्तर्कलह का निवारण करने के लिए और हूणों तथा शकों से प्रायः मुठभेड़ रहने के कारण इन्हें मगध और कोसल छोड़ना पड़ा। कालिदास के सम्बन्ध में भी राजशेखर का एक श्लोक जल्हण की 'सूक्ति मुक्तावली' और हरिकवि की 'सुभाषितावली' में मिलता है - 'एकोपि जीयते हन्त कालिदासो न केनचित् शृङ्गारे ललितोद्गारे कालिदासत्रयो किमु' एकादश शताब्दी मे उत्पन्न हुए, राजशेखर की इस उक्ति.से यह प्रकट होता है कि उस शताब्दी तक तीन कालिदास हो चुके थे । परन्तु वर्तमान आलोचकों का मत है कि कालिदास दो तो अवश्य हुए हैं एक 'रघुवंश', 'शाकुन्तल' आदि के कर्ता और दूसरे नलोदय तथा 'पुष्पबाण-यिलास' आदि के रचयिता । ___ यह विभाग साहित्यिक महत्व की दृष्टि से किया गया है । शृगार-तिलक जैसे साधारण ग्रंथों को महाकवि कालिदास की कृति ये लोग नही मानना चाहते, इसलिए एक छोटे कालिदास को मान लेना पड़ा । बड़े कालिदास के लिए कुछ समीचीन समालोचकों का मत है कि ये 'शाकुन्तल' और 'रघुवंश' के कर्ता, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय में हुए । इनका मत है कि 'आसमुद्रक्षितीशानाम' 'इदं नवोत्थानमिवेन्दुमत्यः' 'ज्योतिष्मतीचन्द्रमसव रात्रि.' इत्यादि स्थानों में 'इन्दु' और 'चन्द्र' शब्दों से समुद्रगुप्त के वंशधर चन्द्रगुप्त द्वितीय की ओर कालिदास का संकेत है और इसीलिए महाकवि कालिदास मगध के गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय के राजकवि थे। ____ इधर परांजपे आदि विद्वानों का मत है कि कालिदास ने 'मालविकाग्निमित्र' मे शुंगों के इतिहाम का सूक्ष्म विवरण दिया है, जैसा कि उम काल मे बहुत ही थोड़े समय के पीछे का कवि लिख सकता है। पटवर्धन ओर वैद्य महोदय कालिदास को ५७ ईमवीय पूर्व का मानते हैं और भी कई विद्वान् इनके समर्थक हैं । काव्यों में ज्योतिष सम्बन्धी ज्यामिति और होरा आदि ज्योतिष शास्त्र सम्बन्धी शब्दों को देखकर कुछ लोगों का अनुमान है कि 'रघवंश' आदि के रचयिता कालिदास छठी शताब्दी म रहे होंगे। उनके नाम से प्रसिद्ध 'ज्योतिविदाभरण' ग्रंथ को भी-ज्योतिष मम्बन्धी गणनाओं के अनुसार-- अनेक लोगों ने यह स्थिर किया है कि यह ग्रंथ भी छठी शताब्दी का है; इमलिए इन ग्रंथों के ३८: प्रसाद वाङ्मय