पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४६१

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जाय। मैं उसका मैनेजिंग डाइरेक्टर बना दिया जाऊँ। मैंने उनकी यह योजना अस्वीकृत कर दी। मैरी यह धारणा थी कि सम्मिलित रूप से कार्य करना ठीक नहीं । अन्त में सम्मिलित हिन्दू परिवार की भांति उसमें भी छीछालेदर होती है और कम्पनी फेल हो जाती है। प्रसाद ने अपनी साहित्यिक कृति से कोई लाभ नहीं उठाया। मैं जानता था कि वे उससे किसी तरह का आर्थिक लाभ नही चाहते। मैंने अपने मन मे निश्चय कर लिया था कि सफलता और लाभ होने पर, अन्य रूप से उसे उनके लिए उपयोग किया जायगा। जीवन के अन्तिम प्रहर में प्रसाद की मनोवृत्तियों मे कुछ परिवर्तन हो चला था। वे समझने लगे कि उनकी समस्त पुस्तकों की व्यवस्था एक लिमिटेट संस्था द्वारा संचालित हो, तो फिर हिसाब में कोई त्रुटि न होगी और नियमित रूप से उसकी आय भी प्राप्त होती रहेगी। उनकी योजना भी सफल हुई । श्री राय कृष्णदास ने अपना भारती भंडार, लीडर प्रेस को दे दिया। प्रमाद की समस्त पुस्तकें रॉयल्टी पर थी। लीडर प्रेस द्वारा प्रबन्ध होने पर उसमे लाभ होने का पूर्ण विश्वास था। ऐसी स्थिति मेरी संस्था पर उन्हें कोई भरोसा नही था। मेरे सामने आर्थिक कठिनाई भी थी। दूसरी ओर आपस में कही पैसे के मामले में अड़चन न पड़े-यही प्रमुख कारण था ! ___ मैं मोचता था कि प्रसाद के आदेशानुसार मैंने सब कार्य किया, फिर भी हजारों का घाटा हुआ। अब किसी तरह पुस्तकों द्वारा उमकी पूर्ति होगी। मेरे-उनके स्वार्थो का द्वन्द्व था। ___ मैं साफ बातें ही पसन्द करता है। यदि यही बाते प्रसाद स्पष्ट कर देते तो मुझे तनिक भी दुख न होता और मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेता। लेकिन वे गुप्त रूप से भीतर-भीतर काम कर रहे थे। खुलकर बाते करना उनके स्वभाव के एकदम विपरीत था। ____ मैं यह मानता हूँ कि कर्ज के कारण उनकी आर्थिक स्थिति सदैव मुक्तहस्त होने में बाधक होती थी। प्रसाद ने अपने जीवन मे न तो विलासिता में खर्च किया, न उन्हें कोई व्यसन था । युवावस्था में वे भांग पीते थे। जबसे मेरा-उनका साथ हुआ, मैंने कभी कोई नशा करते उन्हें नहीं देखा। मित्रों के लिए भांग बनती। वे केवल ठंडाई ही पीते । उनका कहना था कि शराब उन्होंने जीवन-भर नही पी थी। जए की ओर कभी उनका आकर्षण नही हुआ। ऐमी स्थिति मे सदैव ही उनका व्यय सीमित था। घर से बाहर निकलकर घूमने-फिरने में उन्हें बड़ा आनन्द मिलता था। आवेग के प्रति उनमें आकर्षण था। युवावस्था में घोडों की तेज चाल देखने का उनका स्वभाव संस्मरण पर्व : १५७