सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

कसा भयंकर युद्ध हुआ, यह केवल इससे ज्ञात होता है कि स्वयं जगद्विजयी सिकन्दर को कहना पड़ा-"आज हमको अपनी बराबरी का भीम-पराक्रम शत्र मिला और यूनानियों को तुल्य-बल से आज युद्ध करना पड़ा। इतना ही नही, सिकन्दर का प्रसिद्ध अश्व 'बूकाफेलस' इसी युद्ध मे हत हुआ और सिकन्दर स्वयं भी आहत हुआ। ___ यह अनिश्चित है कि सिकन्दर को मगध पर आक्रमण करने को उत्तेजित करने के लिए ही चन्द्र गुप्त उसके पास गया था अथवा ग्रीक-युद्ध की शिक्षापद्धति सीखने के लिए वहां गया था। उसने किकन्दर से तक्षशिला मे अवश्य भेट की। यद्यपि उसका कोई कार्य वहां नहीं हुआ, पर उसे ग्रीकवाहिनी की रणचर्या अवश्य ज्ञात हुई; जिससे कि उसने पार्वत्य-सेना में मगध-राज्य का ध्वंस किया। क्रमशः वितरता, चन्द्रभागा, इरावती के प्रदेशों को विजय करता हुआ सिकन्दर विपाशा-तट तक आया और फिर मगध राज्य का प्रचण्ड प्रताप सुनकर उसने दिग्विजय की इच्छा को त्याग दिया और ३२५ ई० पू० मे फिलिप नामक पुरुष को क्षत्रप बनाकर आप काबुल की ओर गया। दो वर्ष के बीच मे चन्द्रगुप्त उसी प्रान्त में घूमता रहा और जर वह सिकन्दर का विरोधी बन गया था, तो उसी ने पार्वत्य जातियो को सिकन्दर से लड़ने के लिए उत्तेजित किया और जिनके कारण सिकन्दर को इरावती से पाटण तक पहुंचने मे दस मास समय लग गया और इस बीच मे इन आक्रमणकारियो से सिकन्दर की बहुत क्षति हुई । इस मार्ग मे सिकन्दर को मालव जाति से युद्ध करने मे बडी हानि उठानी पड़ी। एक दुर्ग के युद्ध मे तो उसे ऐसा अस्त्राघात मिला कि यह महीनो तक कड़ी बीमारी झेलता रहा । जल-मार्ग से जाने वाले सिपाहियो को निश्चय हो गया था कि सिकन्दर मर गया। किसी-किसी का मत है कि सिकन्दर की मृत्यु का कारण यह घाव था। सिकन्दर भारतवर्ष लूटने आया, पर जान समय उसकी यह अवस्था हुई कि अर्थाभाव से अपने सेक्रेटरी यूडेमिस से उसने कुछ द्रव्य मांगा और न पाने पर उसका कैम्प फंकवा दिया। सिकन्दर के भारतवर्ष मे रहने के ही समय में चन्द्रगुप्त द्वारा प्रचारित सिकन्दर-द्रोह पूर्ण रूप से फैल गया था और इसी समय कुछ पार्वत्य राजा चन्द्रगुप्त के विशेष अनुगत हो गये थे । उनको रण-चतुर बनाकर चन्द्रगुप्त ने एक अच्छी शिक्षित सेना प्रस्तुत कर ली थी और जिसकी परीक्षा प्रथमतः ग्रीक सैनिकों ने ली । इसी गड़बड़ में फिलिप मारा गया और उस प्रदेश के लोग पूर्णरूप से स्वतन्त्र बन गये। चन्द्रगुप्त को पर्वतीय सैनिकों से बड़ी सहायता मिली और वे उसके मित्र बन गये । विदेशी शत्रुओ के साथ भारतवासियो का युद्ध देखकर चन्द्र १ सिकन्दर के चले जाने पर इसी फिलिप ने षड्यन्त्र करके पोरुस को मरवा डाला, जिससे बिगड़कर उसकी हत्या हुई । मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ६५