पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/६७

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मगध में चन्द्रगुप्त : अपमानित चन्द्रगुप्त बदला लेने के लिए खड़ा था; मगध राज्य की दशा बड़ी शोचनीय थी। नन्द आन्तरिक विग्रह के कारण जरित हो गया था, चाणक्य-चालित म्लेच्छ सेना कुसुमपुर को चारो ओर से घेरे थी। चन्द्रगुप्त अपनी शिक्षित सेना को बराबर उत्साहित करता हुआ चतुर रण-सेनापति का कार्य करने लगा। पन्द्रह दिन तक कुसुमपुर को बराबर घेरे रहने के कारण और बार-बार खण्डयुद्ध में विजयी होने के कारण चन्द्रगुप्त एक प्रकार से मगधविजयी हो गया। नन्द ने, जो कि पूर्वकृत पापों में भीत और आतुर हो गया था, नगर से निकलकर चले जाने की आज्ञा मांगी। चन्द्रगुप्त इस बात से सहमत हो गया कि धननन्द अपने साथ जो कुछ ले जा सके ले जाय, पर चाणक्य की एक चाल यह भी थी, क्योंकि उसे मगध की प्रजा पर शासन करना था। इसलिए यदि धननन्द मारा जाता तो प्रजा के और विद्रोह करने की सम्भावना थी। इममें स्थविरावली तथा इण्डि के विवरण में मतभेद है, क्योंकि स्थविरावलीकार लिखते है कि चाणक्य ने धननन्द को चले आने की आज्ञा दी, पर दण्ढि कहते है, चाणक्य के द्वारा शस्त्र से धननन्द निहत हुआ । मुद्राराक्षस से जाना जाता है कि वह विष-प्रयोग से मारा गया। पर यह बात पहले नन्दों के लिए सम्भव प्रतीत होती है ।' च!णक्य की नीति की ओर दृष्टि डालने से यही ज्ञात होता है कि जानबूझकर नन्द को अवसर दिया गया, और इसके बाद किसी गुप्त प्रकार से उसकी हत्या हुई। कई लोगों का मत है कि पर्वतेश्वर की हत्या बिना अपराध चाणक्य ने की! पर जहाँ तक सम्भव है, पर्वतेश्वर को कात्यायन के माथ मिला हुआ जान कर ही चाणक्य के द्वारा विषकन्या पर्वतेश्वर को मिली और यही मत भारतेन्दु जी का भी है । मुद्राराक्षस को देखने से यही ज्ञात भी होता है कि राक्षस पीछे पर्वतेश्वर के पुत्र मलयकेतु से मिल गया था। सम्भव है कि उसका पिता भी वररुचि की ओर पहले मिल गया हो और इसी बात को जान लेने पर चन्द्रगुप्त की हानि की सम्भावना देखकर किसी उपाय से पर्वतेश्वर की हत्या हुई हो । but soon converted the name of liberty into servitude after his success, subjecting those whom he had rescued from foriegn domination to his own authority.


History of A. S. Literature 8. However mysterious the nine Nandas may be if indeed they

really were nine, there is no doubt that the last of them was deposed and slain by Chadragupta. V A. Smith, E. H. of India. मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ६७