पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/६९

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का समय ठीक हो जाता है । ऐतिहासिको का अनुमान है कि २५ वर्ष की अवस्था में चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा यह भी ठीक हो जाता है। क्योंकि पूर्व-निर्धारित चन्द्रगुप्त के जन्म समय ३४६ ई० पू० से २५ वर्ष घटा देने से भी ३२१ ई० पू० ही बचता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त पाटलिपुत्र में मगध-राज्य के सिंहासन पर ३२१ ई० पू० में आसीन हुआ। विजय: उस समय गंगा के तट पर दो विस्तृत राज्य थे जैसा कि मेगास्थनीज लिखता है, एक प्राच्य (Prassi) और दूमरा गंगारिडीज़ (Gangarideas) । प्राच्य राज्य मे अवन्ति, कोसल, मगध, वाराणमी, बिहार आदि देश थे और दूमरा गंगारिडीज़ गंगा के उस भाग के तट पर था, जो कि ममुद्र के समीप में था, वह बंगाल का था। गंगारिडीज और गौड एक ही देश का नाम प्रतीत होता है। गौड राज्य का राजा, नन्द के अधीन था। अवन्ति मे भी एक मध्य प्रदेश की राजधानी थी, वह भी नन्दाधीन थी। बौद्धों के विवरण से ज्ञात होता है कि ताम्रलिप्ति' जिसे अब तमलुक कहते है, मिदनापुर जिले में उस समय समुद्र-तट पर अवस्थित गंगरिडीज़ के प्रसिद्ध नगरों में था। प्राच्य देश की राजधानी पालीवोथा थी, जिसे पाटलिपुत्र कहना असगत न होगा । मेगास्थनीज लिखता है कि गंगरिडीज़ की राजधानी पार्थिलीस थी। डाक्टर श्यानवक का मत है कि सम्भवन. यह वर्धमान ही था, जिसे ग्रीक लॉग पार्थिलीस कहते थे। इममें विवाद करने का अवसर नहीं है, क्योकि वर्धमान गौड़ देश के प्राचीन नगरों मे है और यह राजधानी के योग्य भूमि पर बसा हुआ है। केवल नन्द को ही पराजित करने से, चन्द्रगुप्त को एक बडा विस्तृत राज्य मिला, जो आसाम से लेकर भारत के मध्यप्रदेश तक व्याप्त था। अशोक के जीवनीकार लिखते है कि अशोक का राज्य चार प्रादेशिक शासकों से शामित होता था। तक्षशिला--पंजाब और अफगानिस्तान की राजधानी थी; नोषली वलिंग की, अवन्ति मध्यप्रदेश की ओर स्वर्णगिरि - भारतवर्ष के दक्षिण भाग की राजधानी थी। अशोक की जीवनी मे ज्ञात होता है कि उसने केवल कलिग ही विजय किया था। बिन्दुमार की विजयों की गाथा कही नही मिलती। मि० स्मिथ १. अस्तीह नगरी लोके ताम्रलिप्तीति विश्रुता। तत म तत्पिता तेन तनयेन समं अयो । द्वीपान्तर स्नुषाहेतोर्वाणिज्यव्यदेशत: ६८। (कथापीठ लम्बक ५ तरंग) इससे ज्ञात होता है कि ताम्रलिप्ति समुद्र तट पर अवस्थित थी, जहां से द्वीपान्तर जाने मे लोगों को सुविधा होती थी। २. Vincent A. Smith : Life of Ashoka. मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ६९