के नाम से प्रसिद्धि पानेवाली अजमेर की मसजिद भी है । वहाँ पर प्राचीन मूर्तियों और प्राचीन मन्दिरों के निशान प्रत्यक्ष देख
पडते हैं। यह मसजिद भी मुइज्जुद्दीन मुहम्मद बिन साम.
ही के शासन-काल मे बनी थी। इस पर जो लेख है उसे
कर्नल लीज़ ने प्रकाशित किया है। उसमे साफ लिखा है कि
मन्दिरों को तोड़कर यह मसजिद बनवाई गई। “ताजुल-
मासिर" नाम के इतिहास में भी यह बात स्पष्ट लिखी है।
अतएव यदि किसी पुरानी इमारत को तोड़कर यह मीनार
बनाया जाता तो इस बात का उल्लेख अवश्य ही इस पर होता।
इसके लेख, जिनमे मुहम्मद बिन साम का नाम है, इस बात
की गवाही दे रहे हैं कि यह उसी का विजयस्तम्भ है ; उसी के
नाम से कुतुबुद्दीन ने बनवाया; और नया ही बनवाया। कुतुब-
मीनार के नीचे के खण्ड मे एक लेख था जो अब बहुत घिस
गया है, परन्तु “कुतुबुद्दीन असफेहसालार" का नाम उसमे
अभी तक पढ़ा जाता है। इस लेख मे शायद कुतुबुद्दीन के
द्वारा मीनार के बनाये जाने का स्पष्ट उल्लेख रहा हो।
फ़ीरोज़शाह के समय मे इस मीनार पर बिजली गिरी थी।
उसके गिरने से इसके दो खण्ड बिगड़ गये थे। इन दो खण्डो
की मरम्मत फीरोज़शाह ने कराई। मरम्मत क्या, उनको नये
सिरे से उसने बनवाया। इस विषय का लेख उस मीनार के
पाँचवे खण्ड मे है। यह ७७० हिजरी का, अर्थात् मीनार बनने
के कोई १८३ वर्ष पीछे का, है। इसे हम नीचे देते हैं——