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प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पडित और कवि पशुओं का मरवट न बनाये। परंतु कुछ कारणों से अगले बुद्धिमानों ने वैसी तजवीज की है। इन दिनों प्राचार्य जिनसिंह उर्फ मानसिंह ने अर्ज कराई कि पहले जो ऊपर लिसे अनुसार हुक्म दुआ था वह खो गया है। इसलिए हमने उस फरमान के अनुसार नया फरमान इनायत किया है। चाहिए कि जैसा लिख दिया गया है वैसा ही इस श्राजा का पालन किया जाय । इस विषय में बहुत बड़ी कोशिश और ताकीद समझकर इसके नियमों में उलट- फेर न होने दिया जाय । ता० ३१ अरदाद इलाही सन् ४६ । हजरत बादशाह के पास रहनेवाले दौलतखॉ के हुक्म पहुँचाने से, उमदा अमीर और सहकारी राय मनोहर को चौकी और ग्वाजा लालचंद के वाकिया (समाचार), लिखने की बारी में लिखा गया।" इस फरमान से स्पष्ट है कि सूरि को बारह दिन के लिए जीवहिंसा न की जाने के विषय में तो फरमान मिला ही था। उनके बाद जयचन्द्र सूरि को भी एक सप्ताह के लिए फरमान मिल गया था। अकार ने हीरविजय को जगद्गुरु की पदवी दी । इसके वाद होरविजय ने शांतिचंद्र-नामक पंडित को उपाध्याय बनाकर अकवर के दरवार में छोड़ दिया और १५८४ ३० में प्रापने फतहपुर से प्रस्थान किया। कुछ दिन वे प्रयाग में रहे और कुछ दिन फिर नागरे में। तदनंतर श्राप गुजरात