२४ प्राचीन पडित और कवि लोलिवराज के बनाने हुए हैं । इनके नाम ह चमत्कार- चिंतामणि, रत्नकलाचरित, वैद्यविलास और लोलिवराजीय । पर ये हमारे देखने में नहीं पाये और शायद छपे भी नहीं। उनके प्रसिद्ध तीन ग्रंथों में से पहले दो वैद्यक रिपय के हे और अंतिम में कृष्ण का चरित है। इन ग्रंथों में पहला ग्रथ वैद्यजीवन ही अधिक प्रसिद्ध है। तीसरे, अर्थात् हरिविलास में, नंद के घर कृष्ण के पहुँचाये जाने से लेकर उद्धव-संदेश तक की कथा है। काशी से निकलनेवाली काशीविधा-सुधा निधि-नामक संस्कृत पुस्तक के दूसरे भाग के सोलहवें अक में, लोलिंगराज के विषय में, पडित बेचनराम शर्मा इस प्रकार लिखते है- दिवाकर सूरि के सुत लोलियराज राजा भोज के सम- कालीन, सूर्य नामक नरेश के पुन, हरिहर की सभा के पडित थे। चे दाक्षिणात्य ब्राह्मण थे, यड़े विषयी थे, महा- मूर्ख थे। उनका बड़ा भाई जीविका के लिए देश विदेश घूमा करता था और वे दिन-रात न जाने कहाँ रहकर भोजन के समय घर में उपस्थित होते थे प्रोर अपने पदे भाई की स्त्री. के परोसे हुए भोजन को धारठ सारर फिर राहर चले जाने थे । एक दिन उनकी दुर्वृत्ति से अत्यंत सिन होकर उनके भाई की स्त्री ने उनके सामने से बाली खींच ली और मुद्ध होकर कहा-"रे दुष्ट ! घर से श्राज ही तृ निकल जा। आज तक व्यर्थ ही मैंने तेग पालन पोपण किया।" ये वाफ्य
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