सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोलियराज थे। अन लोलिंगराज की गर्वोति कोई गराप्ति न हुई। गिरिजा का स्तन पान पाकर यदि गणेय पोर कातिय की यरावरी उन्होंने न की तो पाकिया! हम यह नहीं कहते कि लोलियराज की उक्ति भूपादे नहीं, पार्वती उन पर अपश्य प्रसन हुई होगी। हम यह कहते हैं कि पार्वती की प्रसरता का कोई विशेष लयमा लोलिपराज को राति में नहीं मिलता। लोलिपराज के तीनों प्रय, जो उपलब्ध हुप ६ पहुत छोटे-छोटे है । यद्यपि उनी फरिता सग्स और मायादिक, तथापि यह पालिदास, भयभूति और घीर्ष यादि की फरिता की परापरी नहीं पर सफती, और दा पारियों को शायद गिरिमा के मान पान पा सीमायन मात्र या था। संभव है, लोलियम और फार पद्धन प्रय याय हो, जिनका एना श्री सप फिी दोन लगा दो, थथमा देश विहार के कारण ये नए दोग दो। अपर जिस अगति पा र किया गया है उसमें फदी गईस पाता प्रमगोलिदरार में मिल गपाpिar mar-पर्वत पर दीन दादी माया पाएका पाir. ही नहीं गगनाशिपिसमय एप Irforman aft मर में सोम पाट गर गगा मेंam ranाणा में भी पर अंगाधोदी PATRोर -