पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/३५

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लोलिंगराज प्रयोग किया है। एक श्लोक अय हम वधारतंस से शार उद्धत करते है, जिसमें "पादशाद" शन्द पाया है- समतपृधापतिपूजनीयो दिगद्गनाश्लिष्टयश शरीर। गुणिप्रिय ग्रन्थममु ध्यतानी ल्लोलिम्रा फरिपादशाह.॥ दिशापिगी नियों में जिसके यशोरूपी शरीर का पातिगन फिया है, जो समस्न राजपाका पूजनीय है। जो फयियों का पादशाद है-मे लोतियराज ने गुगवानों पोप्रोनिपात्र इस प्रकी रचना की। गुवमानों के प्रतिपाय इस घेद्यायनम में पंयरा नीर हैं और उनमें पंचमशार के अनुसार पदायों के गुण दोष का पन रस पप में अपने को सप राजाओं का पूजनीय परपर और अपारपो दिगा में पहुंचाकर खासिय- रागनी पियों के मारवाद पर गर है। "पाना" सौर "मुता" पपाशी साशी गई कि उप मगर मुगलमानों का प्रमेश दक्षिा में हो गया था और आमदारापान में कारमी माद लोगों के पास पहुँच गरे । लिचीकापुर पा grait गप पहन पुmtifusiपाद परसे परी मुगermii मागnिimammu arerankfr मुमो पानि