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प्राचीन पंडित और कवि
इसमें सब मिलाकर पाँच विलास है, और प्रत्येक विलास में नीचे लिखे अनुसार विषययोजना और श्लोक संख्या है—
विलास | विषय | श्लोक संख्या |
–– | –– | –– |
प्रथम | स्वर-प्रतीकार | ७६ |
द्वितीय | अतीसार और ग्रहणी-प्रतीकार | २६ |
तृतीय | कासश्वास-प्रतीकार | ३९ |
चतुर्थ | राजयक्ष्मादि-रोग-प्रतीकार | ४३ |
पंचम | वाजीकरण | २१ |
जोड़ २०५ |
अब लोलिंबगज की रसिकता के दो-चार उदाहरण सुनिए। वैद्यजीवन के आरंभ में आप कहते हैं—
येपां न चेतो ललनासु लग्नं
मग्न न साहित्यसुधासमुद्रे।
ज्ञास्यन्ति ते किं मम हा प्रयासा
नन्धा यथा चारवधृपिलासान्॥
जिन्होंने साहित्यरूपी सुधा-समुद्र में डुबकी नहीं लगाई और जिनका मन ललनाओं में लीन नहीं, वे इस ग्रंथ की रचना करने में होनेवाले मेरे परिश्रम को उसी प्रकार न जान सकेंगे जिस प्रकार नेत्रहीन मनुष्य वार वनिताओं के हाव-भावों को नहीं जान सकते। वैद्यजीवन बनाने में क्या आपको सचमुच ही बड़ा परिश्रम हुआ? एक घड़ी में सौ