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प्राचीन पंडित और कवि

६४ प्राचीन पंडित श्रोर करि चुके थे। बोद्धों की माध्यमिक शाखा के प्राचार्य नागार्जुन इसी विश्वविद्यालय के प्राचार्य थे। यहीं उन्होंने बौद्ध धर्म के अनुयायियों को इस नई शाखा के सिद्धांतों का उपदेश किया, था। महापंडित नागसेन ने यहीं से अपने उपरेशों के द्वारा ग्रीक नरेश मीनोन्टसी की शंकाओं का समाधान कर उसके हृदयांधकार का नाश किया था । इमी विश्वविद्यालय के प्राचार्य-पद को सुशोभित करनेवाले गुणमति बोधिसत्व ने सारय-दर्शन का संडन बड़ी ही निर्दयता से करके बाद मत की प्रकृष्टता सिद्ध को धी । इमी निश्वविद्यालय की बदौलत प्रभामित्र नाम पंडित ने चीन में बौद्ध धर्म को प्रचार किया था। इस नालंद-विश्वविद्यालय के जिनमित्र नामक पंडित को तिव्वत नरेश ने अपने देश में बुलापर चौद्ध धर्म के सिद्धातों का ज्ञान प्राप्त किया था। चद्रपात स्थिरमति, ज्ञानचंद्र और शीघ्रवुद्ध श्रादि पांडित्य-व्याम मंडल के चमकते हुए तारे यही उदित हुए थे। शीलभद्र का आदि नाम देतदेव था । लड़कपन ही से वे विलक्षण प्रतिभाशाली और तीक्ष्ण-बुद्धि थे। सोलह हा वर्ष की उम्र में उन्होंने वेद, सांख्य, न्याय और वैद्यक-शास्त्र में पारदर्शिता प्राप्त कर ली। पर इतने ही से शीलभद्र को संतोष न हुश्रा । विद्यापरिशीलन विषयक उनकी पिपासा न घुझी। उस समय नालंद का विद्यालय भारतवर्ष में अपना द्वितीय न रखता था। आप वहीं पधारे । इतनी छोटा