अतएर पद्मावती नगरी यहीं रही होगी,इसमें संदेह नहीं। वहाँ पुरानी इमारतों के कुछ चिह्न और धुस्स अब तक विद्यमान है। वे सब ईसा की पहली शताब्दी से आठवीं शताब्दी तक के हैं। प्राचीन नाग-वंश के राजाओं के सिके तो आज तक सैकड़ो मिल चुके हैं और अब तक मिलते जाते हैं। ईसा की पहली या दूसरी शताब्दी का एक शिला-लेख भी संस्कृत में मिला है। लिपि उसकी ब्राह्मी है। ग्वालियर-राज्य के पुरातत्व-विभाग के अध्यक्ष,मिस्टर एम्० वी० गर्ने,ने इस लेख का संपादन किया है। लेख में मणिभद्र-नामक देवता की मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है। यह मूर्ति भी टूटी-फूटी आस्था में मिली है। लेख राजा शिवनंदी के समय में खोदा गया था। पर इस राजा का कुछ भी ऐतिहासिक हाल अय तक नहीं मालूम हुआ। पाया के निवासी परंपरा से सुनते आये है कि वहाँ पहले एक प्रसिद्ध राजधानी थी और अनेक प्रतापी नरेश यहाँ हो गये हैं। यहाँ तक कि वे लोग संकल्प में "पद्मावती महा.सगमक्षेत्रे" का अर तक उल्लेख भी करते हैं। इससे सिद्ध है कि मालतीमाधर में भवभूति को उल्लिग्नित पद्मावती नगरी यहीं पर थी जहाँ पर अप पपाया-नामक छोटा-सा गाँव है। यदि आठवीं शताब्दी में ग्वालियर के आसपास कामांत विदर्म-देश कहाता रहा हो तो,कुछ लोगों के अनुमान के अनुसार,पद्मावती ही भगभूति की जन्मभूमि
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